
शाहिद कपूर अभिनीत 'देवा': एक थ्रिलर जिसमें एक्शन और भावनाओं का बेजोड़ मिश्रण
शाहिद कपूर की नई फिल्म, 'देवा', रोशन एंड्र्यूज द्वारा निर्देशित एक रोमांचक थ्रिलर है जो एक असामान्य पुलिस अधिकारी की कहानी को आगे बढ़ाती है। इसे एक्शन और भावना के समिश्रण के साथ प्रस्तुत किया गया है। फिल्म की शुरुआत होती है एक दिलचस्प घटना से जब देव, शाहिद कपूर द्वारा निभाया गया एक विद्रोही पुलिस अधिकारी, एक महत्वपूर्ण जानकारी का खुलासा करने के दौरान एक दुर्घटना का शिकार हो जाता है। यह फिल्म दर्शकों को एक नये सफर पर ले जाती है जहां पर किसी भी मोड़ की उम्मीद नहीं की जा सकती।
फिल्म की प्रमुख पात्रता और कहानी
देवा एक ऐसी कहानी है जो पुलिस विभाग और अपराध की दुनिया के अंधेरे पहलुओं की पड़ताल करती है। फिल्म का केंद्रीय चरित्र, देव, एक असाधारण और अपरंपरागत पुलिस अफसर है। शाहिद कपूर ने इस किरदार को बखूबी निभाया है। वह अपने अहंकारी और चतुर अंदाज से दर्शकों को प्रभावित करते हैं और धीरे-धीरे अपनी किरदार की गहराई को उजागर करते हैं जब वह दोस्त रोहन की मौत और अपनी स्मृति की कमी के साथ संघर्ष करते हैं। वह अपने दल के साथ प्रशांत जाधव को पकड़ने का प्रयास कर रहे हैं, जो एक निर्दयी गैंगस्टर है।
फिल्म के अन्य कलाकार, जैसे पवेल गुलाटी और प्रावेश राणा, भी अपने किरदारों के साथ न्याय करते हैं, हालांकि पूजा हेगड़े और कुब्रा सैत को अपनी पूरी क्षमता दिखाने का मौका नहीं मिलता। फिल्म मु्बई पुलिस के मलयालम संस्करण की रीमेक है, और निर्देशक ने इस संस्करण में अंत के मोड़ को बदल कर दर्शकों को आकर्षित करने की कोशिश की है। कहानी की गति एक समय पर धीमी हो जाती है, लेकिन दूसरी छमाही में खुलासे के साथ यह तेजी पकड़ती है जो दर्शकों को पैनी नजर बनाए रखने पर मजबूर करती है।
नरेटिव की मजबूती और कमजोर पक्ष
फिल्म की मुख्य कथा, हालांकि उच्च-ऑक्टेन एक्शन और भावनात्मक गहराइयों का मिलाजुला प्रारूप प्रस्तुत करती है, लेकिन कुछ हिस्सों में कहानी के नायक की पीड़ा और आखिरी मोड़ को बांधने में कमी रह जाती है। यह ओवरसॉल कहानी की मुख्य धारा से जुड़ने में विफल साबित होती है। मगर यही फिसलन कहानी को अलग दिशा में मोड़ देती है, जिससे यह देखने योग्य बन जाती है। फिल्म का प्रयास है कि वह दर्शकों को एक तीव्र और अविस्मरणीय अनुभव प्रदान करे, जिसे यह कुछ हद तक पूरा करती है।
फिल्म का अंतिम विचार
'देवा' फिल्म को देखने का अनुभव नया और रोमांचक होता है। शाहिद कपूर की प्रस्तुति और उनके द्वारा लाए गए किरदार की गहराई इसे प्रभावित करती है, साथ ही कुछ भाग ऐसे भी होते हैं जो दर्शक से जुड़ने में असहजता प्रस्तुत करते हैं। कहानी के नायक के भावनात्मक पहलुओं और उनका सौम्य और साहसी रहस्योद्घाटन, दोनों पार्ट्स में डाले गए हैं और यही बात इसे दर्शक के लिए दिलचस्प बनाती है। फिल्म मनोरंजन के लिए बनाई गई है और कहानी में लगातार अप्रत्याशित मोड़ फिल्म को संतोषजनक बनाता है।
7 टिप्पणि
भाई साहब, इस फ़िल्म को गज़ब समझते हैं?! लेकिन कहानी में कई छिद्र हैं!!! एक्शन से भरी है पर सस्पेंस कम लग रहा है!!! निर्देशक ने कोशिश की, पर कहीं गिर गया!!!
जैसे रात के बाद सवेरा नहीं आता, वैसे ही इस फिल्म में भी अंधेरा ही अंधेरा है। कहानी की गहराई को खोजो तो चाहोगे कि हर मोड़ पर नया प्रश्न है। साहसिक पुलिस अधिकारी का चित्रण तो अच्छा है पर असली सवाल है उसकी आत्मा का संघर्ष। यादों की कमी एक मोटी परत बनाती है, पर उस परत को तोड़ना मुश्किल है। दोस्त की मौत का दर्द दर्शाता है एक बिंदु को, जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। फिल्म की गति एक सुस्त नदी की तरह चलती है, फिर अचानक तूफ़ान बनती है। यह मोड़ दर्शकों को सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हमने सही समझा। प्रोफेसर की तरह सोचो तो इस फिल्म की रचना में कई दार्शनिक विचार छिपे हैं। हाँ, यह एक थ्रिलर है, पर जब तक थ्रिलर के साथ दमन भी नहीं मिला तो वह अधूरा है। प्रत्येक सीन को एक कविता की तरह देखो, जहाँ शब्दों का भार बहुत है। असल में, कोई भी फ़िल्म केवल मनोरंजन नहीं हो सकती, वह विचार भी देनी चाहिए। इस फ़िल्म में विचारों का मिश्रण है, पर मिलावट का अहसास भी है। अंत में जो मोड़ आता है, वह हमें आश्चर्यचकित करता है, पर क्या वह सार्थक है? यह हम पर निर्भर करता है कि हम इसे कैसे पढ़ते हैं।
दोस्तों ये ‘देवा’ के बारे में मेरा विचार बहुत ही सकारात्मक है! शाहिद की एक्टिंग बहुत ही सशक्त और दिल से महसूस करने वाली है। कथा में भावनाओं और एक्शन का संतुलन बहुत ही सटीक है। निर्देशक ने कहानी को ऐसे मोड़ दिया है जो दर्शकों को बांधे रखता है। संगीत और साउंड डिज़ाइन भी काफी प्रभावी है। सहायक कलाकारों का योगदान भी सराहनीय है। समग्र रूप से फिल्म एक रोमांचक यात्रा जैसा लगता है।
यो यार ये भीनी भीनी कहानी का फिक्स्शन ना है ? जिया बटाइम तो बहुत अइडिया है पर यु ज़्यादादर्
फिल्हॉल ??? मार्केन प्रोबलेम तो शोभा नहीं है । सीन में थोक थोक ड्रमैटीक लाइन्स ओऑ, लस्सती है दिखनमें पर मैं अकाबर है ?
भाई लोग, मैं मानता हूँ कि इस फिल्म के पीछे कोई बड़ी साजिश है 😏। कैमरा एंगल, लाइटिंग, सब कुछ एक गुप्त संदेश छुपा रहा है 🕵️♂️। देखो, मुख्य किरदार का नाम ‘देवा’ है, जो एक पुरानी धार्मिक कथा से जुड़ा हुआ है। शायद यह फिल्म किसी रहस्य को बाहर लाने का प्रयास है। 📽️🌌
फिल्म का ढांचा काफ़ी असंगत है।
बिलकुल सही कहा, असंगत ढांचा ही इस फिल्म को गिराता है! एक्शन भली-भांति नहीं बंधता, और कहानी की लकीर टूटती दिखती है! इसका परिणाम है दर्शकों का निराश होना! अगली बार बेहतर स्क्रिप्ट की जरूरत है! देखो, अगर आप थ्रिलर चाहते थे तो आपको एक गहरा प्लॉट चाहिए था! यह सब नहीं हो पाया!