
शरद पूर्णिमा 2024: जानें तिथि का महत्व
शरद पूर्णिमा, हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है और इसे बहुत विशिष्ट धार्मिक महत्व प्राप्त है। वर्ष 2024 में शरद पूर्णिमा 16 अक्टूबर को मनाई जाएगी। इस दिन की शुरुआत 16 अक्टूबर को रात 08:40 बजे से होगी और यह 17 अक्टूबर की शाम 04:55 बजे समाप्त होगी। इस दौरान चंद्रमा का उदय 16 अक्टूबर को शाम 05:05 बजे होगा, जो इसे एक दिव्य और शुभ रात बनाता है।
पौराणिक कथा और धार्मिक महत्व
शरद पूर्णिमा को हिंदू संस्कृति में एक पवित्र दिन माना जाता है, जब चंद्रमा पूर्ण शक्ति और ऊर्जा के साथ आकाश में उदित होता है। धार्मिक दृष्टिकोण से, ऐसा माना जाता है कि इस रात को चंद्रमा अपनी सभी सोलह कलाओं के साथ चमकता है। ये सोलह कला मानवता के अद्वितीय गुणों का प्रतीक होती हैं और भगवान कृष्ण की पूर्णता को दर्शाती हैं, जो इन सभी कलाओं के पूर्ण स्वामी थे। वहीं, भगवान राम के बारे में कहा जाता है कि उनके पास बारह कला थीं।
चंद्रमा और देवी लक्ष्मी की पूजा
शरद पूर्णिमा का त्योहार मुख्य रूप से चंद्रमा देवता और लक्ष्मी जी की पूजा से जुड़ा है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करती हैं और अपने भक्तों को धन और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं। चंद्रमा की शीतल किरणें शरीर और आत्मा को शांत करने वाली होती हैं, इसी कारण इस रात तैयार की गई खीर को चंद्रमा की रोशनी में रखने का प्रचलन है। इसे अगली सुबह भक्तों में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।
व्रत और उपवास की परंपरा
इस शुभ अवसर पर उपवास रखना दिन भर की गतिविधियों में से एक महत्वपूर्ण विधि है। श्रद्धालु पूरे दिन उपवास रखते हैं और शाम को चंद्रमा के दर्शन के बाद ही भोजन ग्रहण करते हैं। इस दिन उपवास रखने से स्वास्थ्य, समृद्धि और सुख की प्राप्ति मानी जाती है। भक्तगण चंद्रमा के साथ लक्ष्मी माता की पूजा करते हैं और खीर का अर्पण कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
कोजागरा व्रत की विशेषता
शरद पूर्णिमा को कई जगहों पर कोजागरा व्रत के रूप में भी जाना जाता है। यह व्रत सामाजिक और आध्यात्मिक दोनों स्तरों पर महत्वपूर्ण होता है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य न केवल व्यक्तिगत लाभ बल्कि सामूहिक सुख और शांति की प्राप्ति भी है। लोगों का विश्वास है कि इस रात उपवास करने से मानसिक शांति और आत्मिक विकास होता है।
संस्कृति और सामूहिक उल्लास
शरद पूर्णिमा का त्योहार न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। भारत के विभिन्न भागों में इसे विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है, जिसमें सामूहिक पूजा, कीर्तन और भजन का आयोजन होता है। यह पर्व सामाजिक एकता का भी प्रतीक है, जब समाज के सभी वर्ग मिलकर उल्लास और समृद्धि के इस पर्व को साझा करते हैं।
उपसंहार
संक्षेप में कहा जाए तो, शरद पूर्णिमा एक ऐसा पर्व है, जो न केवल चंद्रमा के दिव्य महत्व को प्रदर्शित करता है बल्कि हमें सांस्कृतिक एवं धार्मिक समृद्धि का भी अहसास कराता है। इसके माध्यम से न केवल हमारा स्वास्थ्य सुदृढ़ होता है बल्कि सम्पूर्ण समाज किसी एक विचारधारा से जुड़कर खुशहाली की ओर अग्रसर होता है।
19 टिप्पणि
शरद पूर्णिमा का समय वाकई बहुत ख़ास है, मेरे परिवार में इस दिन देसी मिठाईयाँ बनती हैं।
बिलकुल सही बात कही 😊 इस व्रत से शारीरिक और मानसिक शांति मिलती है, धन बरसाने वाली माँ लक्ष्मियों का आशीर्वाद भी।
उक्त पूर्णिमा को पौराणिक दृष्टिकोण से तुच्छ नहीं समझना चाहिए; यह न केवल कलात्मक अभिव्यक्ति का प्रतीक है बल्कि आध्यात्मिक जागरूकता का स्रोत।
सही कहा, लेकिन आज‑कल लोग बस फोटो शेयर करने में ही लगे हैं, असली पूजा‑पद्धति भूल रहे हैं।
शरद पूर्णिमा का महत्व सिर्फ चंद्रमा के उजाले में नहीं, बल्कि हमारे सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन में गहराई से निहित है।
जब हम इस रात्रि में लक्ष्मियों के साथ जुड़े अपने कर्मों की समीक्षा करते हैं, तो समस्त ब्रह्मांड एक नई ऊर्जा से भर जाता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो पूर्णिमा के दौरान पृथ्वी पर कई जैविक प्रक्रियाएँ तेज़ होती हैं, जैसे कि पौधों की प्रकाशसंश्लेशन प्रक्रिया।
यह वैज्ञानिक तथ्य हमें यह समझाता है कि क्यों लोग इस दिन विशेष रूप से फल‑फूल की पूजा करते हैं।
भारतीय परम्पराओं में कहा गया है कि इस रात्रि में मन, शरीर और आत्मा की शुद्धि सर्वोपरि होती है, जिससे आने वाले वर्षों में सुख‑समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है।
शरद ऋतु में सूर्य की किरणें कम होंगी, परन्तु चंद्रमा की ठंडी रोशनी हमारे भीतर की अँधेरी भावनाओं को शांत करती है।
इसी कारण कई गृहस्थ इस दिन साधु‑संत के प्रवचन सुनने या कीर्तन में भाग लेते हैं, जिससे सामाजिक एकता भी बढ़ती है।
वह व्रत जो हम रखते हैं, वह केवल भोजन नहीं रोकता, बल्कि मन की इच्छाओं को भी नियंत्रित करता है, जो आध्यात्मिक उन्नति में मददगार है।
इसके साथ ही, लक्ष्मियों की पूजा हमें आर्थिक स्थिरता की ओर प्रेरित करती है, जिससे हम अपने व्यावसायिक निर्णयों में भी सतर्क रह सकें।
इस प्रकार शरद पूर्णिमा हमें न केवल धार्मिक रूप से बल्कि व्यावहारिक रूप से भी लाभ देती है।
कई इतिहासकारों ने इस दिन के सामाजिक समारोहों को भारतीय संस्कृति के सामुदायिक स्वरूप का मुख्य आधार माना है।
जब गाँव‑गांव में बटके हुए लोग एक साथ मिलकर पवित्र कुण्डली बनाते हैं, तो वह सामूहिक ऊर्जा का एक अद्भुत प्रदर्शन होता है।
इस ऊर्जा को सही दिशा में मोड़ने के लिए ध्येन और विनम्रता आवश्यक है, जिससे हम अपने व्यक्तिगत और सामाजिक उद्देश्यों को साकार कर सकें।
इसलिए शरद पूर्णिमा का उत्सव केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन के हर पहलू में संतुलन स्थापित करने का एक साधन है।
अंत में यह कहा जा सकता है कि यदि हम इस रात्रि को वास्तविक मन से मनाते हैं, तो भविष्य में आने वाली कठिनाइयों को भी सहजता से पार कर सकते हैं।
सोचिए, जब हम आकाश में तारे देख रहे होते हैं, तो वही आत्मा का प्रसार भी हमारे भीतर होता है, और यही शरद पूर्णिमा का असली जादू है।
पूरा दिन व्रत रखकर शाम को चंद्रमा देखना और फिर खीर अर्पित करना एक शानदार रिवाज है; आप इसे घर की साफ‑सफ़ाई के बाद और शांति के संगीत के साथ कर सकते हैं।
हालाँकि सब कहते हैं कि पूर्णिमा में व्रत रखना फ़ायदेमंद है; लेकिन वैज्ञानिक रूप से इसे प्रमाणित नहीं किया गया है!!!
ऊँची ध्वनि में चाँद की पूजा... दिल धड़के!
शरद पूर्णिमा की पूजा हमें परम्परा की स्मृति दिलाती है; इस मौके पर सामुदायिक भोज आयोजित करना सामाजिक बंधन को मजबूत करता है।
ये फुल्ला फुल्ला नाईट वेस्त द अन्रीन्य! चंदा रोशनी में खीर क खा लेप!
क्या तय है कि इस पूरी कथा में कोई छिपी राजनैतिक एजेंडा नहीं? 🤔 शायद सरकारी मीडिया ही इसे प्रोपैगैंडा बना रहा है।
समय के साथ ये परम्पराएँ अति‑आधुनिक हो गई हैं, कोई असली लाभ नहीं दिखता।
धूमधाम से जश्न मनाओ, नहीं तो इस रात के जादू को खो दोगे!
पूरा दिन व्रत रखकर शाम के बाद सब खा लेना ठीक रहता है, इससे शरीर हल्का रहता है।
देश की रीति‑रिवाजों को अपनाना ही असली भारतवासी होने की निशानी है :)
इनकी इस उत्सव की घोषणा सरकार की जनसंख्या नियंत्रण योजना के तहत की गई थी, ताकि लोगों को नियंत्रण में रखा जा सके।
परम्परा तो बस पुरानी आदतें हैं, नई ज़िंदगी में उनका कोई मतलब नहीं।
जब हम सभी एक साथ चाँद की आरती सुनते हैं तो ऐसा लगता है जैसे पूरी पृथ्वी एक सामुदायिक हृदय की धड़कन बन गयी है - यही हमारे संस्कृति की सच्ची शक्ति है।
शरद पुर्णिमा पर सबको शुभकामना