
नया फाइलिंग कैलेंडर – कौन‑से करदाता कब तक फाइल कर सकते हैं
आयकर रिटर्न (ITR) की दाखिला सीमा के बारे में हाल ही में केंद्रीय सीधे कर बोर्ड (CBDT) ने अधिसूचना जारी की। तकनीकी गड़बड़ी के चलते ITR filing deadline को दो भागों में बाँटा गया है, जिससे गैर‑ऑडिट और ऑडिट दोनों वर्गों के लिये अलग‑अलग समय सीमा तय हुई है।
नॉन‑ऑडिट मामलों जैसे व्यक्तिगत करदाता, हिन्दू अंडवाइडेड फैमिली (HUF) और छोटे व्यवसायियों को ITR‑1 से ITR‑4 फॉर्मों के तहत 31 जुलाई की मूल तिथि को आगे बढ़ाकर 16 सितंबर 2025 तक रिटर्न दाखिल करने की अनुमति दी गई है। इसके विपरीत, ऑडिट‑आवश्यक कंपनियों को अपना टैक्स ऑडिट रिपोर्ट (TAR) 31 अक्टूबर 2025 तक फाइल करना होगा, जबकि ट्रांसफर प्राइसिंग के तहत आती संस्थाओं को 30 नवंबर 2025 तक का विस्तार मिला है।
- व्यक्तिगत, HUF, और प्रोफेशनल (ITR‑1‑4): 16 सितंबर 2025 तक
- ऑडिट‑आवश्यक व्यापारिक इकाइयाँ: 31 अक्टूबर 2025 तक
- ट्रांसफर प्राइसिंग लागू इकाइयाँ: 30 नवंबर 2025 तक
रजतपुर हाई कोर्ट द्वारा जारी अंतरिम आदेश ने टैक्स ऑडिट रिपोर्ट की अंतिम तिथि को 30 सितंबर से बढ़ाकर 31 अक्टूबर कर दिया, जिससे कई कर पेशेवरों को राहत मिली। परन्तु, यह आदेश केवल राजस्थान के भीतर लागू है; राष्ट्रीय स्तर पर विस्तृत विस्तार के लिये CBDT की आधिकारिक घोषणा का इंतजार किया जा रहा है।
देर से फाइल करने पर दंड – क्या है असली कीमत?
समय पर रिटर्न नहीं दाखिल करने पर आयकर अधिनियम की धारा 234A और 234F के तहत दो प्रमुख दंड लगते हैं। धारा 234A के तहत बकाया कर पर 1 % प्रतिमास ब्याज वसूल किया जाता है, चाहे देरी एक दिन की ही क्यों न हो। धारा 234F के अनुसार देर से फाइल करने पर निश्चित राशि का जुर्माना लगाया जाता है, जो फाइलर की श्रेणी और देरी की अवधि पर निर्भर करता है।
देर से फाइल करने वाले करदाता 31 दिसंबर 2025 तक अपने रिटर्न दाखिल कर सकते हैं, परन्तु इस समयावधि के दौरान उन्हें ऊपर बताए गए दोनों प्रकार के दंड का भुगतान करना पड़ेगा।
- धारा 234A – बकाया कर पर 1 % प्रति माह ब्याज
- धारा 234F – देर से फाइल करने पर निश्चित जुर्माना (व्यक्तियों के लिये ₹5,000 या ₹10,000, कंपनियों के लिये ₹10,000)
सीए हार्दिक काकडिया और कई पेशेवर संघों ने इस बात पर ज़ोर दिया है कि तकनीकी glitches और देर से जारी यूटिलिटीज़ फ़ॉर्मों के कारण करदाताओं को दंड मिलने से बचाया जाना चाहिए। उनका तर्क है कि सिस्टम अपग्रेड या पोर्टल में निरंतर व्यवधान नहीं हो तो करदाताओं को अतिरिक्त समय की जरूरत नहीं पड़ेगी।
आगे बढ़ते हुए, कर सलाहकारों ने कुछ उपयोगी सुझाव दिए हैं: पहले से कर योग्य आय का अनुमान लगाकर अनुमानित टैक्स जमा कर दें, पोर्टल की वारंवार अपडेट्स पर नजर रखें, और अगर तकनीकी समस्याओं के कारण फाइलिंग में बाधा आ रही हो तो लिखित आवेदन के माध्यम से राहत मांगें। इस तरह से दंड के बोझ को कम किया जा सकता है और अनुपालन की गति बनी रहती है।p>