
नेहरू प्लेस की दो एकड़ जमीन पर फाइव-स्टार होटल, 55 साल का खेल और DDA की नई कमाई की किताब
एक होटल, 55 साल और लगभग ₹10,000 करोड़ की अनुमानित कमाई—दिल्ली विकास प्राधिकरण के लिए यह सिर्फ एक सौदा नहीं, राजस्व जुटाने का नया फॉर्मूला है। नेहरू प्लेस की प्राइम लोकेशन पर दो एकड़ जमीन के लिए हुई नीलामी में Fleur Hotels Private Limited (Lemon Tree Hotels की सहायक कंपनी) ने वार्षिक लाइसेंस फीस ₹27.19 करोड़ की बोली लगाई। यह DDA के ₹18 करोड़ के रिज़र्व प्राइस से करीब 50% अधिक है। 13 अगस्त 2025 को हुई इस बोली ने संकेत दे दिया कि बाजार नए मॉडल पर भरोसा दिखा रहा है और उच्च-गुणवत्ता संपत्तियों के लिए प्रीमियम देने को तैयार है।
यह सौदा DDA के नए Special License Property (SLP) मॉडल का पहला बड़ा इम्प्लीमेंटेशन है। परंपरागत फ्रीहोल्ड या परपेचुअल लीज़ छोड़कर अब सालाना लाइसेंस के जरिए दीर्घकालिक अनुबंध होंगे—जमीन का मालिकाना हक प्राधिकरण के पास रहेगा और डेवलपर को तय अवधि के लिए विकसित करने और चलाने का अधिकार मिलेगा। सरल शब्दों में, जमीन बिकेगी नहीं, कमाई हर साल आती रहेगी और संपत्ति पर सार्वजनिक नियंत्रण बना रहेगा। यही वह बदलाव है जो इस सौदे को मिसाल बनाता है।
प्रोजेक्ट Lemon Tree के लग्ज़री ब्रांड ‘Aurika’ के तहत विकसित होगा और 500 से ज्यादा कमरों के साथ राजधानी के सबसे बड़े होटलों में शामिल हो सकता है। लोकेशन खुद कहानी कहती है—नेहरू प्लेस, जहां कॉर्पोरेट ऑफिस, आईटी सर्विसेज, ट्रेड और मेट्रो की कनेक्टिविटी demand को स्थिर रखती है। बिजनेस ट्रैवल, कॉन्फ्रेंस, एग्ज़ीबिशन और शॉर्ट-स्टे का मजबूत मिश्रण इस तरह के बड़े होटल को टिकाऊ आधार देता है।
इस मॉडल में वार्षिक फीस में पूर्वनिर्धारित वृद्धि (escalation) शामिल है, जो 55 साल तक DDA की आय को रैखिक नहीं, बल्कि बढ़ता हुआ रखती है। यही वजह है कि शुरुआती साल की ₹27.19 करोड़ फीस, समय के साथ मिलकर, कुल अनुमानित संग्रह को कई गुना बढ़ा देती है। RFP 2 मई 2025 को जारी हुई थी—यानि बाजार को स्पष्ट नियम, तय समयसीमा और प्रतिस्पर्धी प्रक्रिया मिली।
क्या बदला, किसे फायदा और आगे क्या?
पुराने मॉडल में ऊंची जमीन कीमतें और भारी अग्रिम भुगतान कई प्रोजेक्ट्स की व्यवहार्यता तोड़ देते थे। यहां सालाना लाइसेंस फीस डेवलपर के कैश फ्लो के अनुकूल बैठती है। बैंकों के लिए भी यह स्ट्रक्चर ज्यादा भरोसेमंद लगता है क्योंकि जमीन पर सार्वजनिक स्वामित्व और लंबे अनुबंध से नीति-जोखिम घटता है। DDA को दूसरी तरफ एकमुश्त रकम के बजाय स्थिर, बढ़ती हुई वार्षिक आय मिलती है—यानी ‘अन्युटी’ जैसा भरोसा।
नेहरू प्लेस वाले सौदे से कुछ स्पष्ट संकेत निकलते हैं:
- बाजार को लैंड-लाइट, ऑपरेशन-हैवी बिजनेस मॉडल स्वीकार्य है—इसीलिए रिज़र्व से 50% ऊंची बोली आई।
- ब्रांडेड ऑपरेटर (Aurika) के साथ डेवलपर का संयोजन फाइनेंसिंग और प्रोजेक्ट-रिस्क को कम करता है।
- पब्लिक लैंड पर दीर्घकालिक नियंत्रण बना रहने से शहरी नियोजन और सार्वजनिक हित के लक्ष्यों पर निगरानी आसान होती है।
SLP के तहत DDA ने सिर्फ हॉस्पिटैलिटी नहीं, बल्कि कई सेक्टर्स के लिए जमीन को ‘उपयुक्त और व्यावहारिक’ बनाने की योजना बनाई है:
- हॉस्पिटैलिटी और MICE (मीटिंग्स, इंसेंटिव्स, कॉन्फ्रेंस, एग्ज़ीबिशन)
- वेयरहाउसिंग और लॉजिस्टिक्स
- हेल्थकेयर और विशेष अस्पताल
- आइकॉनिक रिटेल और बड़े वाणिज्यिक कॉम्प्लेक्स
नीति का संदेश सीधा है: जमीन का स्वामित्व सार्वजनिक हाथ में रहे, पर विकास निजी दक्षता से हो। इससे दोनों पक्षों के हित जुड़ते हैं—राजस्व और गुणवत्ता। पिछले साल उपराज्यपाल वी. के. सक्सेना के नेतृत्व में शुरू हुए सुधारों का यह पहला बड़ा नतीजा है, जो अब आगे की नीलामियों के लिए टेम्पलेट बन सकता है।
होटल के पैमाने पर नजर डालें तो 500+ कमरों की इन्वेंटरी दिल्ली के प्रीमियम मार्केट में हर साल हजारों कॉन्फ्रेंसेज और बड़ी शादियों का एक अहम हिस्सा कैप्चर कर सकती है। बड़े बॉलरूम, ब्रेकआउट मीटिंग रूम्स, रेस्टोरेंट्स और रूफटॉप वेन्यू—ऐसे एसेट्स की आय का बड़ा हिस्सा कमरों से नहीं, बल्कि F&B और इवेंट्स से भी आता है। नेहरू प्लेस—ओखला—टोला क्षेत्र की कॉर्पोरेट डिमांड इस मिश्रण के लिए उपयुक्त मानी जाती है।
रोजगार के नजरिए से, हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री में आम तौर पर प्रति कमरे 1.0–1.5 प्रत्यक्ष कर्मचारी लगते हैं। 500+ कमरों के हिसाब से 500–750 प्रत्यक्ष नौकरियों की संभावना बनती है। इसमें सप्लाई चेन, ट्रैवल, ट्रांसपोर्ट, मेंटेनेंस, सुरक्षा और इवेंट मैनेजमेंट जैसे क्षेत्रों में अप्रत्यक्ष रोजगार अलग से जुड़ता है।
अब सवाल—टाइमलाइन क्या हो सकती है? लाइसेंस के बाद डेवलपर को डिटेल्ड डिजाइन, बिल्डिंग प्लान अप्रूवल, पर्यावरणीय मंजूरी, अग्नि सुरक्षा, यातायात प्रबंधन योजना, और यूटिलिटी कनेक्शनों की प्रक्रियाएं पूरी करनी होंगी। ऐसे पैमाने के प्रोजेक्ट में निर्माण से संचालन तक अक्सर कई साल लगते हैं। अगर क्लीयरेंस समय पर मिलें और सप्लाई चेन सामान्य रहे, तो रियलिस्टिक टाइमफ्रेम उद्योग में 3–4 साल का माना जाता है।
शहर पर असर की बात करें तो ट्रैफिक और पार्किंग सबसे बड़ी कसौटी होगी। नेहरू प्लेस पहले से हाई-डेंसिटी कमर्शियल ज़ोन है। इसलिए एक्सेस रोड, पिक-अप/ड्रॉप लेन, सप्लाई ट्रकों के समय-निर्धारण और पार्किंग कैपेसिटी का प्लान निर्माण चरण से ही जरूरी है। जल, सीवरेज और सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के लिए भी अपग्रेडेड कैपेसिटी और ऑन-साइट ट्रीटमेंट सिस्टम की अपेक्षा स्वाभाविक है। ऊर्जा खपत कम करने के लिए ग्रीन बिल्डिंग फीचर्स (इन्सुलेशन, हाई-परफॉर्मेंस ग्लास, सौर ऊर्जा, वॉटर रिकवरी) निवेश को भविष्य-प्रूफ बनाते हैं और ऑपरेटिंग कॉस्ट घटाते हैं।
राजस्व की गणित पर आएं। शुरुआती साल में ₹27.19 करोड़ की वार्षिक फीस, और उस पर समय-समय पर वृद्धि—यही वह कॉम्बिनेशन है जो 55 साल में लगभग ₹10,000 करोड़ के आंकड़े तक ले जाता है। फीस के अलावा स्टाम्प ड्यूटी, पंजीयन, प्रॉपर्टी टैक्स और परिचालन के दौरान सर्विसेज पर कर—ये सब मिलकर सरकार के अलग-अलग खजानों तक पहुंचते हैं। DDA के लिए खास बात यह है कि उसे एकमुश्त बड़ी रकम के बजाय लंबे समय तक स्थिर कैश फ्लो मिलता रहेगा।
डेवलपर के सामने भी चुनौतियां कम नहीं हैं। निर्माण लागत, ब्याज दरों का चक्र, कमोडिटी कीमतें, और समय पर क्लीयरेंस—इनमें से किसी एक में भी झटका प्रोजेक्ट की IRR बदल सकता है। हॉस्पिटैलिटी बिजनेस चक्रीय होता है—एक्सपो, एयर ट्रैवल और कॉर्पोरेट खर्च पर निर्भरता रहती है। इसलिए ब्रांड स्ट्रेंथ, लोकेशन एडवांटेज और लागत नियंत्रण—तीनों साथ चलेंगे, तभी इकनॉमिक्स टिकाऊ रहती है।
सार्वजनिक भूमि के बेहतर उपयोग के लिए यह मॉडल दिल्ली से बाहर भी रोल मॉडल बन सकता है। दुनिया के कई बड़े शहर—लंदन, हांगकांग—दीर्घकालिक लीज़/लाइसेंस के जरिए ही प्रमुख भूमि का उपयोग कराते हैं ताकि सार्वजनिक स्वामित्व बचा रहे और विकास भी तेज हो। भारत में भी—विशेषकर मेट्रो शहरों में—ऐसा मॉडल शहरी इन्फ्रास्ट्रक्चर, रेंटल हाउसिंग, ट्रांजिट-ओरिएंटेड डेवलपमेंट और हेल्थकेयर कैंपस जैसी जरूरतों के लिए कारगर साबित हो सकता है।
DDA का SLP ढांचा मार्केट सिग्नल्स पढ़कर आगे की नीलामियों का कैलेंडर तय कर सकता है। निवेशकों के लिए संकेत साफ है—स्पष्ट टाइटल, पारदर्शी नीलामी, लंबे अनुबंध और ब्रांडेड ऑपरेटरों के साथ साझेदारी; यही चार बिंदु पूंजी की लागत कम करते हैं और प्रतिस्पर्धा बढ़ाते हैं।
आगे क्या देखें?
- लाइसेंस एग्रीमेंट और विस्तृत डिज़ाइन की मंजूरियां
- यातायात और यूटिलिटी अपग्रेड की स्पष्ट योजना
- निर्माण चरण में ग्रीन बिल्डिंग और ऊर्जा-क्षमता लक्ष्य
- होटल के लिए ऑपरेशनल पार्टनरशिप और प्री-ओपनिंग टाइमलाइन
पहले ही सौदे में ऊंची बोली और दीर्घकालिक आय की तस्वीर ने बता दिया कि पब्लिक लैंड मैनेजमेंट के लिए यह तरीका कारगर हो सकता है। अब नजर इस बात पर रहेगी कि नेहरू प्लेस का प्रोजेक्ट कितनी तेजी और गुणवत्ता के साथ आगे बढ़ता है—क्योंकि यहीं से आने वाले सालों के लिए निवेशकों का भरोसा तय होगा।
7 टिप्पणि
नयी लैंड लाइसेंसिंग मॉडल को देख कर मेरे अंदर एक गहरी निराशा उत्पन्न हुई। DDA का यह कदम सार्वजनिक जमीन को निजी मुनाफे के लिए खोल रहा है, जबकि आम नागरिक को इस प्रक्रिया में कोई आवाज़ नहीं दी गई। ऐसा लगता है कि राजस्व की तलाश में सामाजिक जिम्मेदारी को पीछे धकेल दिया गया है। अंततः यह मॉडल सिर्फ बड़े लेवल के निवेशकों को फायदेमंद रहेगा, न कि आम लोगों को।
जब तक दिल्ली की जमीन पर ऐसा रस्ते नहीं बनता जहाँ हर एक स्याही जैसा नया सौदा दिखे, तब तक यह खेल खत्म नहीं होगा।
DDA ने नेहरू प्लेस की दो एकड़ को लाइसेंस मॉडल में डाल दिया, जैसे कोई रॉयल टाइटैनिक को जल में लहरों से घुमा रहा हो।
कौरो के लेबल पर 55 साल की अवधि लिखी है, पर क्या हम इस शासित गलियों में सच्ची स्वतंत्रता देख पाएँगे?
हर साल ₹27.19 करोड़ की फीस, बढ़ती हुई, जैसे कोई दुर्गन्धित सीढ़ी ऊपर-नीचे खींचती रहे।
दूसरी ओर, डेवलपर को यही मौक़ा मिला है कि वह सिर्फ अपने लाभ की गिनती करे, न कि सार्वजनिक हित की।
लोगों का रोजगार तो सही, पर बस एक या दो सौ कमरे कहाँ से आते हैं जब जमीन का स्वामित्व सार्वजनिक हाथ में ही रहना चाहिए?
यदि यह मॉडल सफल रहता है, तो अगले पाँच साल में हमें दिल्ली के हर कोने में इस तरह की लाइसेंसिंग दिखेगी।
इसे देखते हुए, मेरे दिल की धड़कन तेज़ हो रही है, जैसे मैं किसी बहुत बड़े तूफ़ान के कगार पर खड़ा हूँ।
हमें सोचने की जरूरत है कि क्या हम इस सहकारी व्यवस्था को लेकर आगे बढ़ रहे हैं या सिर्फ़ एक और क़ैदख़ाना बना रहे हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने भी कहा था कि सार्वजनिक जमीन का उपयोग जनता के लिए होना चाहिए, फिर भी यहाँ हमने वही नहीं देखा।
DDA की यह चाल हमें बताती है कि वह अब सिर्फ़ राजस्व संग्रह करने का उपकरण बन गया है, न कि विकास का कर्ता।
भले ही इस होटल से 500 से अधिक नौकरियां बनें, पर क्या यह उन हजारों लोगों की समस्या का समाधान बन पाएगा जो अभी बेरोजगारी से जूझ रहे हैं?
हर साल के बढ़ते शुल्क को देखते हुए, भविष्य में यह मॉडल राजकोष के लिए भी बोझ बन सकता है, यदि आर्थिक मंदी आ गई तो?
मैं इस बात को दोहराना चाहता हूँ कि हमें हमेशा सार्वजनिक हित को प्राथमिकता देनी चाहिए, निजी मुनाफे को नहीं।
अंत में, यह निर्णय सिर्फ़ एक आर्थिक गणित नहीं, बल्कि हमारे शहर की पहचान और भविष्य की दिशा को तय करता है।
मुझे लगता है कि यह मॉडल कुछ हद तक उपयोगी हो सकता है अगर शर्तें सख्त हों और पारदर्शी हों। बस यह देखना होगा कि लाइसेंस की फीस में कितना इज़ाफ़ा होगा और कितना समय में। हमें यह भी देखना चाहिए कि स्थानीय लोगों को इससे क्या लाभ मिलेगा
DDA की ये चाल देश के भविष्य को बचाएगी 😊
हां, पर क्या आप जानते हैं कि इस तरह के बड़े लेन-देन में अक्सर छिपे होते हैं विदेशी पूँजी के हाथ? ये लाइसेंस मॉडल मूल रूप से बाहरी एंटिटी को हमारे सार्वजनिक जमीन पर पहुंच देता है, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। इसलिए हमें बारीकी से जांच करनी चाहिए
यह योजना सिर्फ राजकोषीय लाभ के लिए है, सामाजिक लाभ नहीं
मैं समझता हूँ कि राजकोषीय लाभ जरूरी है, पर हमें यह भी देखना चाहिए कि इस मॉडल से सार्वजनिक सेवाओं में सुधार कैसे हो सकता है। अगर सही ढंग से लागू किया जाए तो यह निजी दक्षता और सार्वजनिक हित को संतुलित कर सकता है। हमें एक संवादात्मक मंच बनाना चाहिए जहाँ सभी हितधारकों की आवाज़ सुनी जाए