
फिल्म 'हमारे बारह' पर विवाद और अदालत का हस्तक्षेप
बॉलीवुड फिल्मों के संदर्भ में पिछला कुछ समय विवादों से भरा रहा है, और 'हमारे बारह' भी इसका अपवाद नहीं है। इस फिल्म में प्रमुख भूमिका निभा रहे अभिनेता अन्नू कपूर की यह फिल्म अपनी रिलीज से पहले ही कानूनी विवादों में घिर गई थी। फिल्म के खिलाफ दाखिल याचिकाओं में दावा किया गया था कि इसमें कुरान का विकृतीकरण किया गया है और यह इस्लामिक धर्म तथा मुस्लिम समुदाय के खिलाफ है। इस कारण से फिल्म की निर्धारित रिलीज़, पहले 7 जून और फिर 14 जून, को टाल दिया गया।
बॉम्बे हाईकोर्ट का निर्णय
फिल्म की समीक्षा और सुनवाई के बाद, बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति बी पी कोलाबावल्ला और फ़िरदौस पूनीवाला की दो सदस्यीय बेंच ने मामले पर निर्णय लिया। अदालत ने फिल्म को रिलीज़ के लिए मंजूरी दी, लेकिन इसके लिए आवश्यक शर्तें भी लगा दीं। निर्माताओं ने अपने विवादास्पद तत्वों को हटाने और कुछ और परिवर्तनों को शामिल करने पर सहमति जताई। इनमें फिल्म की शुरुआत में डिस्क्लेमर जोड़ना और कुछ संवादों को बदलना शामिल था। इसके अलावा, एक और कुरान की आयत को भी फिल्म में जोड़ने का निर्देश दिया गया। इन सभी परिवर्तनों के बाद फिल्म को केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) से प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए निर्देशित किया गया।

निर्माताओं पर जुर्माना और अदालत का निर्देश
अदालत ने फिल्म के ट्रेलर को बिना प्रमाणन जारी करने पर निर्माताओं पर ₹5 लाख का जुर्माना भी लगाया। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने फिल्म की रिलीज पर रोक लगाते हुए हाईकोर्ट को इस मामले में उचित निर्णय करने का निर्देश दिया था। अदालत ने यह भी तय किया कि फिल्म में मुस्लिम समुदाय या कुरान के खिलाफ कोई आपत्तिजनक सामग्री नहीं है और इसका उद्देश्य महिलाओं को सशक्त बनाना है।
फिल्म की आगामी रिलीज और इसके संभावित प्रभाव
अदालत के निर्णय के अनुसार, फिल्म अब 21 जून को रिलीज़ होगी। हर न्यायपालिका प्रयोग और निर्णय के साथ, सेंसरशिप और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाना कठिन हो जाता है। इस प्रकार के मामले उद्योग जगत और समाज दोनों के लिए महत्वपूर्ण समर्पण की आवश्यकताएं दर्शाते हैं। फिल्म इंडस्ट्री के लिए यह एक नयी सीख है कि किसी भी धार्मिक या समाजिक संवेदनशील मुद्दे को सावधानीपूर्वक संभाला जाए, ताकि कोई भी समुदाय आहत न हो।

निष्कर्ष
हम आशा करते हैं कि 'हमारे बारह' फिल्म अपने निर्धारित समय पर रिलीज़ होगी और दर्शकों के बीच अपनी जगह बनाएगी। साथ ही, इस घटना ने फिल्म निर्माता और लेखक समुदाय को यह संदेश भी भेजा है कि रचनात्मक स्वतंत्रता के साथ जिम्मेदारी भी आती है, जिसे ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ना चाहिए। बॉम्बे हाईकोर्ट का यह फैसला सिनेमाई अभिव्यक्ति और संवेदनशीलता के बीच संतुलन की एक महत्वपूर्ण मिसाल है।
15 टिप्पणि
ऐसे संवेदनशील मुद्दे को हल्का करने के लिए फिल्म में बदलाव करना जरूरी है। लेकिन साथ ही यह भी दिखता है कि न्यायालय ने बहुत सावधानी बरती है। मैं मानती हूँ कि संतुलन बनाना आसान नहीं, पर जरूरी है।
वाह! आखिरकार कोर्ट ने फिल्म को चलने दिया, लेकिन शर्तें बहुत कड़ी हैं। अभिव्यक्ति की डगर पर अब हर कोई रहनुमा बन गया है!
फिल्म को रिलीज़ मिलने से लोगों को देखना मिलेंगे। कोर्ट का फैसला सही लग रहा है
देशभक्तों का हक़ है कि फिल्म में सही संदेश हो 🙌✨। कोर्ट ने जो शर्तें रखी हैं, वो हमारे राष्ट्रीय मूल्यों के लिये भी फायदेमंद हैं।
क्या आप जानते हैं कि इस फैसले के पीछे बड़ी राजनैतिक चाल है? कुछ शक्तिशाली समूह चाहते हैं कि मीडिया को अपनी मार्जिन में रखें, इसलिए वे बार-बार इस तरह के प्रतिबंध लगाते हैं।
कोर्ट ने फिल्म को मंजूरी दी।
संतुलन बनाना कठिन है, पर हमें याद रखना चाहिए कि कला की आज़ादी और सामाजिक संवेदनशीलता दोनों ही एक साथ चल सकते हैं। इस मामले में न्यायालय ने एक मध्यस्थ की भूमिका निभाई। आशा है कि भविष्य में निर्माता भी इस सीख को अपनाएँगे।
भाई लोग, कोर्ट का फैसला सही लगा, फिल्म अब चल सकती है। थोडा टेंशन था पर सब ठीक है।
मैं देखती हूँ कि आप बहुत नाटकीय ढंग से बात कर रहे हैं, पर आपका उत्साह सराहनीय है। फिल्म के लिए आवश्यक बदलाव करना सही दिशा है, क्योंकि मुद्दे की गंभीरता को नहीं घटाया जा सकता। साथ ही, यह दर्शकों को भी संतुलित दृष्टिकोण देगा।
यह फिल्म एक दर्पण की तरह है, जिसमें समाज की कई बारीकियां दिखती हैं। बदलावे के बाद भी, क्या वो असली प्रतिबिंब रहेगा? एैसा लगता है जैसे हम अपनी सच्चाई को धुंधला कर रहे हैं। फिर भी, हमें कोशिश करनी चाहिए कि कला और सम्मान दोनों जियेँ ।
विचार करने लायक बात है-कोर्ट ने स्थानीय भावनाओं को सम्मान देते हुए फिल्म को जारी करने की अनुमति दी। यह एक संतुलित निर्णय है; ऐसा प्रतीत होता है कि सभी पक्षों की भावनाओं को ध्यान में रखा गया है।
आशा है कि भविष्य में भी ऐसे ही सूझ-बूझ वाले निर्णय आते रहें।
इमोटिकॉन के साथ बात करने वाले लोगों के लिए ये फैसला बस एक दिखावा है। असली मुद्दा तो यह है कि कौन से वैध अभिव्यक्ति अधिकारों को सीमित कर रहा है। इस पर एक बार फिर से गहराई से विचार करना चाहिए।
सभी को एक साथ लेकर चलना चाहिए, चाहे वह धार्मिक हो या सांस्कृतिक। इस फैसले से हम सबको एक सीख मिलती है कि विविधता में एकता कैसे बनाये रखें। मैं इस दिशा में सभी निर्माताओं को समर्थन देता हूँ।
हाहा, कोर्ट ने एक वाक्य में फैसला सुनाया – बहुत ही प्रभावशाली! लेकिन यदि आप गहराई से देखें तो इस तरह के छोटे‑छोटे निर्णय बुरे नहीं होते।
सर्वप्रथम, मैं स्पष्ट कर देना चाहूँगा कि इस प्रकार के विवाद में राष्ट्रीय एकता एवं सांस्कृतिक संरक्षण प्रथम प्राथमिकता होनी चाहिए।
कोर्ट ने जिस तरह से फिल्म को शर्तों के साथ मंजूरी दी, वह हमारे मूल्यों के अनुरूप है।
ऐसे मामलों में न्यायी मंडल का कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह सामाजिक समरसता को सुदृढ़ करता है।
फिल्म निर्माताओं को यह समझना चाहिए कि धर्मनिरपेक्षता का अर्थ धर्म के प्रति असम्मान नहीं है, बल्कि सभी विश्वासों का समान सम्मान है।
विनियमित परिवर्तन करके फिल्म को जारी रखना एक आदर्श उदाहरण है कि रचनात्मक स्वतंत्रता को सामाजिक जिम्मेदारी के साथ कैसे संतुलित किया जा सकता है।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इतिहास में कई बार अभिव्यक्ति की आज़ादी को दमन करके राष्ट्रीय अखंडता को नुकसान पहुंचा है।
वर्तमान में, समकालीन सिनेमा को सामाजिक संवेदनशीलता के साथ आगे बढ़ना चाहिए, न कि विवाद को उत्पन्न करके दर्शकों को उत्तेजित करना चाहिए।
कोर्ट की यह शर्तें न केवल धार्मिक भावनाओं का संरक्षण करती हैं, बल्कि एक समान सामाजिक मंच प्रदान करती हैं।
साथ ही, प्रवर्तित डिस्क्लेमर और कुरान आयतों का समावेश दर्शकों को स्पष्ट पृष्ठभूमि देता है, जिससे गलतफहमी दूर रहती है।
समाज का स्थिर विकास तभी संभव है जब विभिन्न विचारधाराओं के बीच संवाद स्थापित हो, न कि टकराव।
इसलिए, न्यायालय के इस निर्णय को हम एक सराहनीय कदम मानते हैं।
फिल्म निर्माताओं को धन्यवाद कि उन्होंने शर्तों को माना और सामाजिक उत्तरदायित्व को अपनाया।
आगे भी ऐसी स्थितियों में हमें दृढ़ता से राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता देनी चाहिए।
अंत में, मैं यह दृढ़ता से कहूँगा कि हमारी संस्कृति का सच्चा सम्मान तभी है जब हम सभी को समान रूप से सराहें और मूल्य दें।
धन्यवाद।