2 जून 2024
अपर एकादशी 2024: आस्था और श्रद्धा का पर्व
अपर एकादशी का व्रत हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण धार्मिक आस्था का पर्व है। वर्ष 2024 में यह उपवास 2 जून को मनाया जाएगा। यह व्रत ज्येष्ठ महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को आता है। एकादशी व्रत के पुण्य फल के विषय में मान्यता है कि यह मनुष्य के समस्त पापों का नाश करता है और मोक्ष की प्राप्ति कराता है।लॉर्ड विष्णु की पूजा-अर्चना इस व्रत का मुख्य अंग होती है, और इस दौरान विशेष मंत्रों का जाप किया जाता है ताकि भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त हो सके।
व्रत का महत्त्व और फल
अपर एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। इसे धर्म की दृष्टि से अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से सभी दुख, दरिद्रता, और कष्टों का नाश होता है। यह व्रत उन लोगों के लिए विशेषतः लाभकारी होता है जो अपने जीवन में सुख-समृद्धि और शांतिपूर्ण जीवन की कामना करते हैं।
पूजा-विधि: कैसे करें सम्पूर्ण विधि से पूजा
अपर एकादशी के दिन स्नानादि कृत्तव्यों से निवृत्त होकर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। पूजा विधि इस प्रकार है:
सामग्री
- पंचामृत
- गंगा जल
- पीला चंदन
- पीले फूल
- घी का दीपक
विधि
- प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- घर के मंदिर की साफ-सफाई करें और भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने दीपक जलाएं।
- भगवान विष्णु को पंचामृत और गंगा जल से अभिषेक करें।
- पीला चंदन और पीले फूल चढ़ाएं।
- घी का दीपक जलाएं और 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जाप करें।
अपर एकादशी व्रत कथा
अपर एकादशी से जुड़ी एक पौराणिक कथा है जो बहुत प्रसिद्ध है। इस कथा के अनुसार, एक समय की बात है कि राजा महिध्वज नामक एक पराक्रमी राजा की हत्या उसके ही भाई ने कर दी थी। राजा की आत्मा प्रेत बनकर धरती पर भटक रही थी। एक दिन एक ऋषि धौम्य ने राजा की आत्मा की मुक्ति के लिए अपर एकादशी का उपवास किया। इस उपवास के पुण्य प्रभाव से राजा को प्रेत योनि से मुक्ति मिली और वह स्वर्ग लोक चला गया।
मुहूर्त और समय
वर्ष 2024 में अपर एकादशी का व्रत 2 जून को मनाया जाएगा। एकादशी तिथि 2 जून को प्रातः 05:04 बजे से आरंभ होकर 3 जून को प्रातः 02:41 बजे समाप्त होगी। इस दौरान व्रतधारियों के लिए पूजा का शुभ समय 2 जून को प्रातः 05:04 से 3 जून को प्रातः 02:41 बजे तक रहेगा।
पारणा का समय
व्रतधारी 3 जून को प्रातः 08:05 से 08:10 बजे के बीच पारणा कर सकते हैं। पारणा का सही समय बहुत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इससे व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है।
योग और नक्षत्र
इस वर्ष अपर एकादशी का व्रत कई शुभ योगों के संयोग में आ रहा है। इसमें सर्वार्थ सिद्धि योग, आयुष्मान योग, सौभाग्य योग और रेवती नक्षत्र का संयोग है। इन योगों का धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्व है और इनका संयोग व्रतधारियों के लिए अत्यधिक मंगलकारी माना जाता है।
उपवास का धर्मिक और आध्यात्मिक महत्व
अपर एकादशी का व्रत केवल धर्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इसे रखने से मनुष्य के समस्त पाप समाप्त हो जाते हैं। इस दिन पूर्ण विधि से व्रत रखने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। इसके साथ ही यह उपवास आत्म-संयम और मन की शांति का महत्व भी सिखाता है।
इस वर्ष के अपर एकादशी के व्रत को विशेष बनाने के लिए हमें चाहिए कि हम इसे पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ करें। जो लोग इस उपवास को सच्चे मन से करेंगे, उन्हें भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होगी और उनके जीवन में खुशियों का आगमन होगा।