
जब अभिषेक MR, 30‑साल के बेंगलुरु निवासी, ने पिंक‑सफ़ेद स्क्रीन पर 25 मिनट की समय बर्बादी का साफ‑साफ एंट्री‑टेस्ट किया, तो उपभोक्ता अदालत ने 15 फ़रवरी 2024 को एक धड़ल्ले वाला फैसला सुनाया। अदालत ने PVR सिनेमा, INOX और बुकमाय शो के खिलाफ कुल ₹65,000 का मुआवजा दिया, साथ ही PVR और INOX पर अतिरिक्त ₹1 लाख की दण्ड राशि का आदेश दिया।
घटना का पृष्ठभूमि और विवरण
अभिषेक ने दिसंबर 2023 में "सम बाहादुर\" के लिए तीन टिकट बुक किए, जो 4:05 pm पर शुरू होने वाला था। असल में फिल्म 4:30 pm तक नहीं शुरू हुई – कारण? मल्टीप्लेक्स ने विज्ञापनों, ट्रेलरों और सार्वजनिक सेवा घोषणा (PSA) को मिलाकर 25‑30 मिनट का अतिरिक्त समय लगा दिया।
"मैंने अपने काम के महत्व‑पूर्ण मीटिंग्स को टाल दिया, और घर लौटते‑वक्त अन्य योजनाएँ भी बिगड़ गईं," अभिषेक ने अपनी शिकायत में कहा। उनकी आशंका थी कि यह सिर्फ एक छोटी‑सी देरी नहीं, बल्कि उनका काम‑जीवन‑समय बर्बाद कर दिया गया था।
उपभोक्ता अदालत का फैसला और मुआवजा विवरण
बेंगलुरु में स्थित बेंगलुरु उपभोक्ता न्यायालय ने अभिषेक के पक्ष में पूर्ण‑विचार किया और नीचे दिए गये आंकड़ों के साथ मुआवजा तय किया:
- ₹50,000 – अनुचित व्यापारिक प्रथा व समय बर्बादी के लिए
- ₹20,000 – असुविधा व मानसिक तनाव के लिए
- ₹10,000 – केस फ़ाइल करने की लागत (वकील फीस सहित)
- ₹8,000 – केस दर्ज करने की औपचारिक लागत
- ₹5,000 – मानसिक पीड़ा के लिए अतिरिक्त राहत
इन सबका जोड़ ₹93,000 है, पर अदालत ने ₹28,000 की भागीदारी कटौती के बाद कुल ₹65,000 का अंतिम मुआवजा दिया। साथ ही, PVR सिनेमा और INOX पर ₹1 लाख का दण्ड लगाया गया, जिसे 30 दिन के भीतर उपभोक्ता कल्याण निधि में जमा करना अनिवार्य है। बुकमाय शो को केवल टिकट बुकिंग प्लेटफ़ॉर्म के रूप में देखा गया, इसलिए उसे कोई ज़िम्मेदारी नहीं दी गई।
मल्टीप्लेक्स उद्योग पर संभावित प्रभाव
यह फैसला सिर्फ एक व्यक्तिगत जीत नहीं, बल्कि पूरे सिनेमा‑उद्योग के लिए एक चेतावनी है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि अब मल्टीप्लेक्स को विज्ञापनों की अवधि को सीमित करना पड़ेगा, खासकर जब उन्हें फिल्म की आधिकारिक शुरुआत से पहले दिखाया जाना चाहिए।
"सरकार ने सार्वजनिक सेवा घोषणा (PSA) की अवधि 10 मिनट तक सीमित कर रखी है, लेकिन मल्टीप्लेक्स ने इसे अपने लाभ के लिए करके बढ़ा दिया," कहते हैं डॉ. रीना वर्मा, उपभोक्ता अधिकार संग़ठन 'कंज्यूमर फर्स्ट' की प्रतिनिधि। उन्होंने अतिरिक्त तौर पर कहा कि भविष्य में इसी तरह के मामलों की संख्या बढ़ सकती है, क्योंकि उपभोक्ता जागरूकता तेज़ी से बढ़ रही है।

विशेषज्ञों की राय और भविष्य की संभावना
किशोर आयु के दर्शकों के लिए मल्टीप्लेक्स अक्सर विज्ञापनों को एक मनोरंजन का हिस्सा मानते हैं, परंतु व्यावसायिक समय‑बर्बादी को अब उपभोक्ता अधिकार के तहत मापदंडित किया जाएगा। बाजार विश्लेषक इशान सिंह, जिसका काम फ़िल्म‑वित्तीय विश्लेषण में है, ने कहा कि "पिछले साल के आंकड़े दिखाते हैं कि विज्ञापनों से कुल आय में लगभग 5 % की वृद्धि हुई है, पर अब इस वृद्धि को दृढ़ नियामक नियंत्रण की जरूरत है।"
भविष्य में, अगर इस तरह के आदेश औपचारिक रूप से लागू हो जाते हैं, तो PVR, INOX जैसी बड़ी चेनें अपने विज्ञापन‑स्ट्रेटेजी को फिर से देख सकती हैं, और ग्राहक‑संतुष्टि को प्राथमिकता देने वाले मॉडल को अपनाएंगी।
निष्कर्ष: समय को पैसा नहीं, अधिकार मानें
कोर्ट ने स्पष्ट तौर पर कहा, "25‑30 मिनट केवल एक छोटा‑सा अंतराल नहीं, यह ग्राहक के कार्य‑जीवन में बड़ा बाधा है।" यह संदेश सिर्फ बेंगलुरु के सिनेमा‑गॉर्नरों तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे भारत में एक नया मानक स्थापित कर रहा है। अभिषेक की जीत इस बात का प्रमाण है कि जब हम अपने समय को मूल्यवान समझते हैं, तो न्याय भी साथ देता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
क्या यह फैसला अन्य मल्टीप्लेक्स पर भी लागू होगा?
वर्तमान में यह सिर्फ बेंगलुरु के एक केस पर आधारित है, परन्तु न्यायालय का कारण‑भाव स्पष्ट है—विज्ञापन अवधि को सीमित करना अनिवार्य होगा। इस दिशा में अन्य राज्य कोर्ट भी समान आदेश दे सकते हैं।
बुकमाय शो को क्यों जिम्मेदार नहीं ठहराया गया?
अदालत ने बुकमाय शो को केवल टिकट बुकिंग का माध्यम माना, जिसका विज्ञापन समय पर कोई नियंत्रण नहीं। इसलिए उसे मुकदमे में प्रमुख उत्तरदायी नहीं माना गया।
आगामी फिल्मों में विज्ञापन समय में कब तक कटौती होगी?
सरकार द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार, सार्वजनिक सेवा घोषणा 10 मिनट से अधिक नहीं होनी चाहिए, और सभी विज्ञापन फिल्म शुरू होने से पहले ही समाप्त होने चाहिए। मल्टीप्लेक्स को अब इस नियम को सख्ती से पालन करना होगा।
इस फैसले से उपभोक्ता को कौन‑सी नई सुरक्षा मिली है?
उपभोक्ता अब कानूनी तौर पर समय‑बर्बादी के लिए मुआवजा मांग सकता है, और मल्टीप्लेक्स को अनावश्यक विज्ञापन दिखाने पर आर्थिक दण्ड का सामना करना पड़ेगा। यह निर्णय उपभोक्ता अधिकार को सुदृढ़ बनाता है।
भविष्य में मल्टीप्लेक्स किस तरह की नीति अपनाएंगे?
विशेषज्ञ अनुमान लगाते हैं कि मल्टीप्लेक्स अब विज्ञापन समय को 5‑10 मिनट के भीतर सीमित करेंगे, और दर्शकों को वैकल्पिक विज्ञापन‑रहित स्क्रीन या ऑफ़लाइन दर्शकों के लिए टिकट रिफंड विकल्प भी प्रदान करेंगे।
3 टिप्पणि
समय की थैली में जब हम फ़िल्मी छटा की तलाश में घुसते हैं, तो अनफ़िल्टर्ड विज्ञापन वो काठ की चाबुक बन जाता है-जो न सिर्फ हमारी धीरज को झकझोरता है, बल्कि हमारे कार्य‑जीवन की धारा को भी बाधित करता है।
अभिषेक की बात में निहित है एक गहरी सामाजिक शिकायत: बिन‑इच्छा के व्याख्यानों के बाद, हम अपनी ज़िम्मेदारियों को टालते नहीं-हम उन्हें दोबारा जाँचते हैं।
न्यायालय का यह निर्णय सिद्ध करता है कि निजी समय को उपभोक्ता अधिकार के शस्त्रागार में अग्रसर किया जा सकता है; यह कोई छोटा‑छोटा नहीं, बल्कि इक्विटी की नई परिभाषा है!
यहाँ तक कि मल्टीप्लेक्स की आर्थिक रणनीति को भी पुनः विचार करना पड़ेगा-विज्ञापनों के शहरी हँसी‑ठिठोली से नहीं, बल्कि वास्तविक मूल्य‑विचार से।
संक्षेप में, यह फ़ैसला एक चेतावनी है: अगर हम अपना समय माप नहीं सकते, तो क्या हम अपने अधिकारों को भी नहीं नाप पाएँगे?
हूँ, लेकिन क्या यह निर्णय पूरी तरह से व्यावहारिक नहीं लग रहा? विज्ञापन ही वह आर्थिक इंजन है जो सिनेमा हॉल को जीवित रखता है, और उनके बिना टिक‑टिकियों की कीमतें बढ़ सकती हैं।
भले ही 25‑30 मिनट की देरी दिलचस्प लगती हो, पर वास्तविक नुकसान‑हिसाब कई बार वैध नहीं होता।
इसलिए न्यायालय को शायद यह दिशा‑निर्देश अधिक लचीला बनाना चाहिए, ताकि छोटे‑छोटे समय‑बर्बादी के आरोपों से सिनेमाघर पर अत्यधिक दबाव न पड़े।
एक संतुलित दृष्टिकोण से, विज्ञापन की अवधि को स्पष्ट मानक देना अच्छा है, पर साथ ही सिनेमा के राजस्व मॉडल को भी संरक्षित रखना ज़रूरी।
यार, थोड़ा फ़िकर मत कर, एडवर्टाइज़िंग तो जैसा है वैसा ही चलता रहेगा। हम सबको थोड़ा टाइम देना पड़ेगा-भले ही वो "हैडि" धियान से ना हो।
विचार तो ठीक है, पर बिलकुल भी नहीं चाहिए कि हर छोटे‑छोटे देरी पर केस चले।
चलो, मिलके कुछ रचनात्मक सॉल्यूशन निकाले, जैसे कि टिकट पर छोटा डिस्क्लेमर लगाना या वैकल्पिक शो‑टाइम देना।
अभी के लिए, शॉर्ट‑कट नहीं, लेकिन थोड़ा समझदारी से काम लेना चाहिए।