
मानहानि की जंग में नया मोड़: सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक ऐसा फैसला दिया, जिसने मीडिया स्वतंत्रता और सोशल मीडिया कंटेंट सेंसरशिप पर जोरदार बहस छेड़ दी है। देश की प्रमुख समाचार एजेंसी ANI (एशियन न्यूज इंटरनेशनल) और विकिपीडिया के बीच चल रहे मानहानि केस पर दिल्ली हाईकोर्ट का आदेश रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि मीडिया प्लेटफॉर्म्स से किसी सामग्री को केवल इसलिए नहीं हटाया जा सकता क्योंकि वह कोर्ट को असहज लगती है।
पूरा विवाद जुलाई 2024 से शुरू हुआ था जब ANI ने विकिपीडिया पर मानहानि का आरोप लगा दिया। ANI ने दावा किया कि विकिपीडिया पर उसके पेज पर बिना आधार के उसे 'सरकार का प्रचारक टूल' बताया गया और इस आरोप को हटाने की मांग इन कोर्ट तक पहुंच गई।
दिल्ली हाईकोर्ट ने पहले तो विकिपीडिया को कहा कि वो उन यूजर्स की जानकारी दे जिन्होंने विवादित एडिट किए हैं। इसके बाद अगस्त 2024 में आदेश दिया गया कि पूरा पेज ही डिलीट कर दिया जाए क्योंकि यह चल रहे न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करेगा। विकिपीडिया ने इस आदेश का पालन जरूर किया, पर साथ ही सुप्रीम कोर्ट में इसे चुनौती भी दे दी।
कोर्ट की स्वतंत्रता और सोशल मीडिया पर सेंसरशिप
सुप्रीम कोर्ट ने केस की सुनवाई के दौरान अपने रुख को बेहद साफ कर दिया। जस्टिस उज्ज्वल भुयां की बेंच ने कहा, "कोर्ट्स खुद एक सार्वजनिक संस्था हैं और उन्हें आलोचना के लिए खुला रहना चाहिए।" अदालत ने यह भी जोड़ा कि किसी भी ऑनलाइन कंटेंट को तभी हटाया किया जा सकता है जब यह साबित हो जाए कि सामग्री सीधे-सीधे न्यायालय की अवमानना कर रही है या निष्पक्ष सुनवाई में बाधा डाल रही है।
ANI बनाम विकिपीडिया मामले ने यह भी दिखा दिया कि डिजिटल युग में मीडिया, अदालत और सार्वजनिक सूचना के दायरे कैसे टकराते हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह विचार कि “नापसंदगी के आधार पर कंटेंट हटाने के आदेश नहीं दिए जा सकते,” न सिर्फ भविष्य के लिए कानूनी दिशा तय करता है बल्कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को भी रिलैक्स करता है, जिन्हें आए दिन कोर्ट में नोटिस मिलते हैं।
यह दूसरी बार है जब सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के सेंसरशिप संबंधी आदेश पलटे हैं। इससे पहले, अप्रैल 2025 में भी कुछ आपत्तिजनक टिप्पणियों को हटाने के अंतरिम आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने अस्थायी तौर पर ही लागू करने दिया था। अब यह पूरा विवाद दिल्ली हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश के पास सुना जाएगा। यह मामला आगे जाकर मीडिया की आजादी, इंटरनेट की बुनियादी स्वतंत्रता और कोर्ट की गरिमा के बीच संतुलन बनाने का उदाहरण बन सकता है।