Supreme Court ने ANI-विकिपीडिया मानहानि विवाद में दिल्ली HC का आदेश पलटा

Supreme Court ने ANI-विकिपीडिया मानहानि विवाद में दिल्ली HC का आदेश पलटा
14 मई 2025 Anand Prabhu

मानहानि की जंग में नया मोड़: सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक ऐसा फैसला दिया, जिसने मीडिया स्वतंत्रता और सोशल मीडिया कंटेंट सेंसरशिप पर जोरदार बहस छेड़ दी है। देश की प्रमुख समाचार एजेंसी ANI (एशियन न्यूज इंटरनेशनल) और विकिपीडिया के बीच चल रहे मानहानि केस पर दिल्ली हाईकोर्ट का आदेश रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि मीडिया प्लेटफॉर्म्स से किसी सामग्री को केवल इसलिए नहीं हटाया जा सकता क्योंकि वह कोर्ट को असहज लगती है।

पूरा विवाद जुलाई 2024 से शुरू हुआ था जब ANI ने विकिपीडिया पर मानहानि का आरोप लगा दिया। ANI ने दावा किया कि विकिपीडिया पर उसके पेज पर बिना आधार के उसे 'सरकार का प्रचारक टूल' बताया गया और इस आरोप को हटाने की मांग इन कोर्ट तक पहुंच गई।

दिल्ली हाईकोर्ट ने पहले तो विकिपीडिया को कहा कि वो उन यूजर्स की जानकारी दे जिन्होंने विवादित एडिट किए हैं। इसके बाद अगस्त 2024 में आदेश दिया गया कि पूरा पेज ही डिलीट कर दिया जाए क्योंकि यह चल रहे न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करेगा। विकिपीडिया ने इस आदेश का पालन जरूर किया, पर साथ ही सुप्रीम कोर्ट में इसे चुनौती भी दे दी।

कोर्ट की स्वतंत्रता और सोशल मीडिया पर सेंसरशिप

सुप्रीम कोर्ट ने केस की सुनवाई के दौरान अपने रुख को बेहद साफ कर दिया। जस्टिस उज्ज्वल भुयां की बेंच ने कहा, "कोर्ट्स खुद एक सार्वजनिक संस्था हैं और उन्हें आलोचना के लिए खुला रहना चाहिए।" अदालत ने यह भी जोड़ा कि किसी भी ऑनलाइन कंटेंट को तभी हटाया किया जा सकता है जब यह साबित हो जाए कि सामग्री सीधे-सीधे न्यायालय की अवमानना कर रही है या निष्पक्ष सुनवाई में बाधा डाल रही है।

ANI बनाम विकिपीडिया मामले ने यह भी दिखा दिया कि डिजिटल युग में मीडिया, अदालत और सार्वजनिक सूचना के दायरे कैसे टकराते हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह विचार कि “नापसंदगी के आधार पर कंटेंट हटाने के आदेश नहीं दिए जा सकते,” न सिर्फ भविष्य के लिए कानूनी दिशा तय करता है बल्कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को भी रिलैक्स करता है, जिन्हें आए दिन कोर्ट में नोटिस मिलते हैं।

यह दूसरी बार है जब सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के सेंसरशिप संबंधी आदेश पलटे हैं। इससे पहले, अप्रैल 2025 में भी कुछ आपत्तिजनक टिप्पणियों को हटाने के अंतरिम आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने अस्थायी तौर पर ही लागू करने दिया था। अब यह पूरा विवाद दिल्ली हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश के पास सुना जाएगा। यह मामला आगे जाकर मीडिया की आजादी, इंटरनेट की बुनियादी स्वतंत्रता और कोर्ट की गरिमा के बीच संतुलन बनाने का उदाहरण बन सकता है।

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19 टिप्पणि

Abhishek Agrawal
Abhishek Agrawal मई 14, 2025 AT 18:30

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सिर्फ अदालतों की शक्ति को कम करने की कोशिश है!!! मीडिया को बिना जांचे-परखे हटाने की अनुमति देना लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है!!! क्या अदालतें अब सार्वजनिक आलोचना से डरने लगी हैं??? हमें इस निर्णय को रिसीवर करना चाहिए!!!

Rajnish Swaroop Azad
Rajnish Swaroop Azad मई 15, 2025 AT 00:03

समय शिल्पी जैसे बदलता है और न्याय के सवाल भी, पर कोर्ट की मंशा को समझना आसान नहीं हो सकता। हमेशा की तरह, शक्ति में बैठे लोग अपनी गलती को छुपाने के लिए कानून को मोड़ते हैं। इस मामले में सत्य को ढूँढना जरूरी है क्योंकि इतिहास अक्सर वही सच्चाई बताता है जो स्वीकार नहीं की जाती।

bhavna bhedi
bhavna bhedi मई 15, 2025 AT 05:36

विकिपीडिया का मंच स्वतंत्र ज्ञान का स्रोत है और इस पर किसी भी प्रकार की सेंसरशिप हमारे सांस्कृतिक विरासत के लिए खतरा है। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय डिजिटल युग में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को रक्षा करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। अदालत ने स्पष्ट किया कि केवल असहजता के आधार पर सामग्री हटाना उचित नहीं है। यह सिद्धांत न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रतिध्वनि पाएगा। ऐसी समझौता न्यायिक प्रक्रिया को भरोसा दिलाती है कि सभी पक्षों को सुनने का अवसर मिलेगा। मीडिया संस्थानों को भी यह याद रखना चाहिए कि आलोचना लोकतंत्र की रीढ़ है। जब तक हम जनता की राय को दबाते नहीं हैं, तब तक न्याय की स्थिति सुरक्षित रहती है। इस निर्णय से बौद्धिक स्वतंत्रता को नई ऊर्जा मिलती है। यह हमें प्रेरित करता है कि ऑनलाइन मंचों पर जानकारी साझा करने में साहस बनाए रखें। साथ ही, इसे देखते हुए अन्य मीडिया घरानों को भी अपने अपने नियमों का पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए। यह केस भविष्य में समान विवादों के लिए एक मिसाल बन सकता है। न्यायालय की यह बात कि "नापसंदगी के आधार पर हटाने के आदेश नहीं" बहुत महत्वपूर्ण है। इसे अपनाने से सोशल प्लेटफॉर्म्स पर अनावश्यक सेंसरशिप कम होगी। इस प्रकार, नागरिकों को अपने विचार व्यक्त करने में अधिक आज़ादी मिलेगी। अंत में, हमें इस दिशा में सतत संवाद बनाए रखना चाहिए

jyoti igobymyfirstname
jyoti igobymyfirstname मई 15, 2025 AT 11:10

ओह माय गॉड! इस कोर्ट के फैसले ने पूरा ड्रामा पेपर को हिला दिया है!! ANI की बोली तो जैसे दरिया में मिल गये! अब देखना मज़ेदार रहेगा कि वो क्या जवाब देते हैं! 😂

Vishal Kumar Vaswani
Vishal Kumar Vaswani मई 15, 2025 AT 16:43

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सिर्फ पुस्तक के पन्नों पर नहीं, बल्कि छुपे हुए अल्फ़ा‑नेटवर्क की पकड़ से बचने की चाल हो सकती है 🤔। अगर कोई बड़ी शक्ति इस निर्णय को समर्थन देती है तो हमारे लिए सतर्क रहना आवश्यक है 😊। ऐसे फैसले अक्सर कवर‑अप के रूप में आते हैं। हमें सावधान रहना चाहिए।

Zoya Malik
Zoya Malik मई 15, 2025 AT 22:16

ऐसे निर्णय हमारे लोकतंत्र की रीढ़ को मजबूत करते हैं

Ashutosh Kumar
Ashutosh Kumar मई 16, 2025 AT 03:50

एक ओर तो यह फैसला न्याय की जीत है, लेकिन दूसरी ओर ANI जैसी एजेंसियों को यह सिखाने की जरूरत है कि वे अपने आरोपों को ठोस सबूतों पर आधारित रखें! अगर नहीं, तो आगे भी ऐसे टकराव नहीं टाले जा सकते! मीडिया को जिम्मेदारी से काम लेना चाहिए, नहीं तो जनता के भरोसे में खाई पड़ जाएगी! यही समय है कि सभी पक्ष मिलकर सच्चाई की ओर बढ़ें!

Gurjeet Chhabra
Gurjeet Chhabra मई 16, 2025 AT 09:23

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिर्फ मुश्किल से हटाने का आदेश नहीं दिया जा सकता। इससे ऑनलाइन जानकारी पर भरोसा बढ़ेगा। अब कई लोग राहत महसूस करेंगे

AMRESH KUMAR
AMRESH KUMAR मई 16, 2025 AT 14:56

इतनी बड़ी अदालत ने अपने देश की सेना जैसे दृढ़ कदम से न्याय की रक्षा की!! यह हमारे लिए गर्व की बात है :) सभी को इस फैसले को सराहना चाहिए

ritesh kumar
ritesh kumar मई 16, 2025 AT 20:30

यह निर्णय राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रोटोकॉल के अनुरूप है; यह एक रणनीतिक प्रतिपक्षी कंटेंट मोडरेशन एलगोरिद्म का प्रमाण है। इससे डिजिटल क्षेत्र में सूचनात्मक युद्ध की लकीरें स्पष्ट हो गई हैं।

Raja Rajan
Raja Rajan मई 17, 2025 AT 02:03

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय कानूनी सिद्धांतों के साथ संगत है। यह बिना किसी अनावश्यक विस्तार के दिया गया है

Atish Gupta
Atish Gupta मई 17, 2025 AT 07:36

इस मामले ने दिखाया कि डिजिटल दुनिया में न्यायिक प्रक्रियाएँ कितनी नाज़ुक हो सकती हैं, लेकिन साथ ही यह भी कि सहयोगी संवाद समाधान की कुंजी है। हमें सभी प्लेटफ़ॉर्म्स को एक समावेशी नीति अपनाने के लिए प्रेरित करना चाहिए। इससे न केवल विवाद कम होंगे, बल्कि समाज में पारदर्शिता भी बढ़ेगी। इस निर्णय को एक अवसर के रूप में देखना चाहिए, जहां विभिन्न स्टेकहोल्डर्स मिलकर बेहतर भविष्य बना सकते हैं। आइए इस दिशा में मिलकर कदम बढ़ाएँ

Aanchal Talwar
Aanchal Talwar मई 17, 2025 AT 13:10

हम्म.. ये फैसला अच्छा लाग्‍ता है, सबको मिलजुल के काम करना चाहिये

Neha Shetty
Neha Shetty मई 17, 2025 AT 18:43

इस निर्णय को देखते हुए हमें सोचना चाहिए कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित करने के क्या परिणाम हो सकते हैं। न्यायालय ने एक स्पष्ट दिशा-रेखा निर्धारित की है जिससे भविष्य में अधिक जिम्मेदार ऑनलाइन व्यवहार को प्रोत्साहन मिलेगा। साथ ही यह संदेश देता है कि न्याय प्रणाली को भी सार्वजनिक आलोचना को सहन करना चाहिए। इस परिप्रेक्ष्य में, सभी स्टेकहोल्डर्स को मिलकर एक संतुलित नीति बनानी चाहिए। यही असली लोकतांत्रिक प्रक्रिया है

Apu Mistry
Apu Mistry मई 18, 2025 AT 00:16

न्याय की इस बात को समझना मुश्किल है, लेकिन मैं महसूस करता हूँ कि इस फैसले में कुछ गहरी धारा छिपी है। शायद यह सिर्फ कानूनी नहीं, बल्कि सामाजिक मनोविज्ञान का खेल भी है।

uday goud
uday goud मई 18, 2025 AT 05:50

वास्तव में, इस निर्णय में कई स्तरों की परतें हैं!!! यह सिर्फ कानूनी लशकार नहीं, बल्कि शक्ति संरचना का एक पुनरुस्थापन है!!! हम इसे एक नई सामाजिक एथोस के रूप में देख सकते हैं जहाँ अभिव्यक्ति का अधिकार और न्याय का संतुलन परस्पर जुड़ा है!!! इस पर विचार करना ज़रूरी है!!!

Chirantanjyoti Mudoi
Chirantanjyoti Mudoi मई 18, 2025 AT 11:23

सभी पक्षों को संतुलित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, लेकिन यह भी सच है कि कभी‑कभी कठोर रुख ही आवश्यक होता है।

Surya Banerjee
Surya Banerjee मई 18, 2025 AT 16:56

भवना जी, आपका लम्बा कमेंट पढ़के बहुत कुछ सीखने को मिला, पर थोड़ा ज्यादा formal लग रहा था। चलो हम सब मिलके इस मुद्दे पर सोचते रहें।

Sunil Kumar
Sunil Kumar मई 18, 2025 AT 22:30

ओह, बिल्कुल, क्योंकि हर फैसला स्वाभाविक रूप से लोकतंत्र को मजबूत बनाता है, है न? 🙄

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