14 अक्तूबर 2024
दिल्ली में लद्दाख भवन के बाहर प्रदर्शन
दिल्ली में लद्दाख भवन के बाहर प्रदर्शन करने वाले क्लाइमेट एक्टिविस्ट सेना वांगचुक और उनके 20 समर्थकों को रविवार, 13 अक्टूबर, 2024 को दिल्ली पुलिस द्वारा हिरासत में ले लिया गया। ये प्रदर्शनकारी शांति के साथ बैठकर अपना विरोध व्यक्त कर रहे थे। हालांकि, पुलिस ने सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए वहां भारी संख्या में तैनाती की थी। प्रदर्शनकारियों में से कुछ का दावा था कि वे शांतिपूर्ण विरोध कर रहे थे और किसी भी प्रकार की गड़बड़ी में शामिल नहीं थे।
एक सीनियर पुलिस अधिकारी ने बताया कि प्रदर्शनकारियों ने लद्दाख भवन के बाहर बैठने के लिए अनुमति नहीं ली थी। उन्होंने केवल जंतर-मंतर पर प्रदर्शन के लिए आवेदन किया था जो अभी विचाराधीन है। ऐसे में पुलिस ने किसी प्रकार का संघर्ष न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए उन्हें हिरासत में लिया।
लद्दाख को छठे शेड्यूल में शामिल करने की मांग
सेना वांगचुक और उनके समर्थक लद्दाख के संविधान के छठे शेड्यूल में शामिल करने की मांग कर रहे हैं। इससे पहले, 30 सितंबर को उन्हें सिंघु बॉर्डर पर हिरासत में लिया गया था और 2 अक्टूबर को रात को रिहा कर दिया गया था। छठे शेड्यूल के तहत पूर्वोत्तर राज्यों जैसे असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में आदिवासी क्षेत्रों की प्रशासनिक व्यवस्थाएं शामिल हैं। यह शेड्यूल इन क्षेत्रों को स्वायत्तता प्रदान करता है जिसमें विधायी, न्यायिक, कार्यकारी और वित्तीय शासकीय पद प्रदान किए जाते हैं।
सेना वांगचुक का यह आंदोलन लद्दाख के अधिकारों की लंबी लड़ाई का हिस्सा है जो पिछले चार वर्षों से जारी है।लद्दाख के निवासी लद्दाख को राज्य का दर्जा दिलाने, सार्वजनिक सेवा आयोग की स्थापना और लेह एवं कारगिल जिलों के लिए अलग लोकसभा सीटों के लिए आवाज़ उठा रहे हैं।
अधिकार और पहचान की लड़ाई
वांगचुक और उनके समर्थकों की एक प्रमुख मांग राज्य का दर्जा पाने की है ताकि लद्दाख में रहने वाले लोगों को आत्मनिर्भर शक्तियों के साथ अधिक स्वतन्त्रता प्राप्त हो सके। हालांकि, अभी तक सरकार ने इस मुद्दे पर कोई स्पष्ट संकेत नहीं दिया है। वांगचुक के समूह और लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) के आदि नेतृत्व के महत्व बहुत अद्भुत है क्योंकि ये पिछले चार वर्षों से इस मुद्दे को उजागर कर रहे हैं।
ये संगठन केवल राज्य का दर्जा, सार्वजनिक सेवा आयोग की स्थापना और अलग लोकसभा सीटों की मांग नहीं कर रहे हैं, बल्कि वे लद्दाख की सांस्कृतिक और परंपरागत पहचान की भी रक्षा करना चाहते हैं। यह लड़ाई केवल एक क्षेत्रीय आंदोलन नहीं है, बल्कि यह एक पहचान की लड़ाई भी है जो लद्दाख के लोगों को उनके अधिकारों और संस्कृति की सुरक्षा देने के लिए है।
भविष्य की उम्मीदें और चुनौतियां
सेना वांगचुक और उनके समूह की उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उच्च रैंक के अधिकारी उनके मुद्दों पर ध्यान देंगे और समाधान निकालेंगे। लद्दाख के लोग अब शांतिपूर्ण ढंग से लेकिन दृढ़तापूर्वक अपने अधिकारों की मांग कर रहे हैं। लोकतंत्र में किसी भी नागरिक को अपनी आवाज उठाने का अधिकार है और ऐसे में वांगचुक का यह आंदोलन उस लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस अनुमानित मुद्दे को कैसे संभालती है और क्या यह प्रदर्शन उनकी मांगों को पूरा करने में सहायता करता है। लद्दाख जैसे स्थान के लिए यह देखना भी महत्वपूर्ण है कि कैसे ऐसी लड़ाइयों में उनकी भविष्य की राजनीतिक और सामाजिक दिशा को आकार मिलता है।