
दिल्ली में लद्दाख भवन के बाहर प्रदर्शन
दिल्ली में लद्दाख भवन के बाहर प्रदर्शन करने वाले क्लाइमेट एक्टिविस्ट सेना वांगचुक और उनके 20 समर्थकों को रविवार, 13 अक्टूबर, 2024 को दिल्ली पुलिस द्वारा हिरासत में ले लिया गया। ये प्रदर्शनकारी शांति के साथ बैठकर अपना विरोध व्यक्त कर रहे थे। हालांकि, पुलिस ने सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए वहां भारी संख्या में तैनाती की थी। प्रदर्शनकारियों में से कुछ का दावा था कि वे शांतिपूर्ण विरोध कर रहे थे और किसी भी प्रकार की गड़बड़ी में शामिल नहीं थे।
एक सीनियर पुलिस अधिकारी ने बताया कि प्रदर्शनकारियों ने लद्दाख भवन के बाहर बैठने के लिए अनुमति नहीं ली थी। उन्होंने केवल जंतर-मंतर पर प्रदर्शन के लिए आवेदन किया था जो अभी विचाराधीन है। ऐसे में पुलिस ने किसी प्रकार का संघर्ष न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए उन्हें हिरासत में लिया।
लद्दाख को छठे शेड्यूल में शामिल करने की मांग
सेना वांगचुक और उनके समर्थक लद्दाख के संविधान के छठे शेड्यूल में शामिल करने की मांग कर रहे हैं। इससे पहले, 30 सितंबर को उन्हें सिंघु बॉर्डर पर हिरासत में लिया गया था और 2 अक्टूबर को रात को रिहा कर दिया गया था। छठे शेड्यूल के तहत पूर्वोत्तर राज्यों जैसे असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में आदिवासी क्षेत्रों की प्रशासनिक व्यवस्थाएं शामिल हैं। यह शेड्यूल इन क्षेत्रों को स्वायत्तता प्रदान करता है जिसमें विधायी, न्यायिक, कार्यकारी और वित्तीय शासकीय पद प्रदान किए जाते हैं।
सेना वांगचुक का यह आंदोलन लद्दाख के अधिकारों की लंबी लड़ाई का हिस्सा है जो पिछले चार वर्षों से जारी है।लद्दाख के निवासी लद्दाख को राज्य का दर्जा दिलाने, सार्वजनिक सेवा आयोग की स्थापना और लेह एवं कारगिल जिलों के लिए अलग लोकसभा सीटों के लिए आवाज़ उठा रहे हैं।

अधिकार और पहचान की लड़ाई
वांगचुक और उनके समर्थकों की एक प्रमुख मांग राज्य का दर्जा पाने की है ताकि लद्दाख में रहने वाले लोगों को आत्मनिर्भर शक्तियों के साथ अधिक स्वतन्त्रता प्राप्त हो सके। हालांकि, अभी तक सरकार ने इस मुद्दे पर कोई स्पष्ट संकेत नहीं दिया है। वांगचुक के समूह और लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) के आदि नेतृत्व के महत्व बहुत अद्भुत है क्योंकि ये पिछले चार वर्षों से इस मुद्दे को उजागर कर रहे हैं।
ये संगठन केवल राज्य का दर्जा, सार्वजनिक सेवा आयोग की स्थापना और अलग लोकसभा सीटों की मांग नहीं कर रहे हैं, बल्कि वे लद्दाख की सांस्कृतिक और परंपरागत पहचान की भी रक्षा करना चाहते हैं। यह लड़ाई केवल एक क्षेत्रीय आंदोलन नहीं है, बल्कि यह एक पहचान की लड़ाई भी है जो लद्दाख के लोगों को उनके अधिकारों और संस्कृति की सुरक्षा देने के लिए है।
भविष्य की उम्मीदें और चुनौतियां
सेना वांगचुक और उनके समूह की उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उच्च रैंक के अधिकारी उनके मुद्दों पर ध्यान देंगे और समाधान निकालेंगे। लद्दाख के लोग अब शांतिपूर्ण ढंग से लेकिन दृढ़तापूर्वक अपने अधिकारों की मांग कर रहे हैं। लोकतंत्र में किसी भी नागरिक को अपनी आवाज उठाने का अधिकार है और ऐसे में वांगचुक का यह आंदोलन उस लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस अनुमानित मुद्दे को कैसे संभालती है और क्या यह प्रदर्शन उनकी मांगों को पूरा करने में सहायता करता है। लद्दाख जैसे स्थान के लिए यह देखना भी महत्वपूर्ण है कि कैसे ऐसी लड़ाइयों में उनकी भविष्य की राजनीतिक और सामाजिक दिशा को आकार मिलता है।
8 टिप्पणि
सेना वांगचुक की मांग समझ में आती है लद्दाख को बेहतर अधिकार चाहिए
देश की शान है लद्दाख! 🙌 सरकार को तुरंत कदम उठाना चाहिए
पिछले कुछ महीनों में विदेशी एजेंसियों की साजिश स्पष्ट दिख रही है, वे लद्दाख की मांग को दबाने के लिए पुलिस को हथियार बना रहे हैं। इस तरह की जुड़ी हुई रणनीति हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालती है। हमें यह समझना चाहिए कि सरकार के पीछे छिपे हुए अभिकर्ता किस दिशा से काम कर रहे हैं। इस आंदोलन को तोड़ने के लिए जाली सुरक्षा उपाय लागू किए जा रहे हैं, जो लोकतांत्रिक अधिकारों के विरुद्ध है। अब समय आ गया है कि हम सब मिलकर इस जाल को तोड़ें।
लद्दाख की स्थिति संवैधानिक सुधार का मुद्दा है, इसे तुरंत सुलझाना चाहिए
लद्दाख के लोगों ने दशकों से लोकतांत्रिक मार्ग से अपना आवाज़ उठाया है।
वे संविधान के छठे शेड्यूल की मांग में एकजुट हैं।
इस मांग का इतिहास स्वतंत्रता के बाद की नीति वैधानिक तंत्र में गहरा जुड़ाव रखता है।
विभिन्न सामाजिक समूहों ने इस मुद्दे को अपने सांस्कृतिक पहचान के साथ जोड़ा है।
सरकार ने अब तक इस दिशा में कोई स्पष्ट संकेत नहीं दिया।
यह असहजता युवाओं में अधिक आशंका उत्पन्न कर रही है।
शान्तिपूर्ण प्रदर्शन का अधिकार संविधान में सुरक्षित है।
इसलिए पुलिस की कार्रवाई को सावधानीपूर्वक देखना जरूरी है।
यदि सुरक्षा कारणों से कोई प्रतिबंध लगा तो उसे वैधता के साथ सिद्ध किया जाना चाहिए।
लद्दाख की भूगोलिक स्थिति राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण है।
परन्तु सुरक्षा का उल्टा प्रयोग अधिकार सीमा में हनन के रूप में देखा जा सकता है।
अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार, शांतिपूर्ण प्रदर्शन को दमन नहीं किया जा सकता।
इस संदर्भ में अनावश्यक हिरासत से सामाजिक असंतोष बढ़ेगा।
हमें संवाद के माध्यम से समाधान खोजने की दिशा में काम करना चाहिए।
आशा है कि सभी पक्ष मिलकर एक संतुलित नीति तय करेंगे।
हैद हट्कि लवॊक के लिऐ अप्परैप्लिकेशन बडिया है
समर्थक सबको धन्यवाद 🙏
जो बात आप कह रहे हैं वह बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि विचारों की शक्ति ही समाज को आगे बढ़ाती है।
लद्दाख की मांग सिर्फ एक प्रशासनिक परिवर्तन नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण है।
हम सभी को इस यात्रा में सहयोगी बनना चाहिए, न कि आलोचक।
विश्वास रखें, समय के साथ समाधान अपने आप सामने आएगा।
हर टुकड़े में एक अंधकार छुपा होता है, और हर आवाज़ में एक प्रकाश।
हमारी आत्मा की गहराई को समझना ही सच्ची मुक्ति है।
इस संघर्ष को देख कर लगता है, जैसे समय स्वयं ही ठहर गया है।