
दक्षिण अफ्रीका में सीरिल रामाफोसा ने 19 जून, 2024 को राष्ट्रपति के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल के लिए शपथ ली। यह समारोह प्रिटोरिया में चीफ जस्टिस रेमंड ज़ोंडो के नेतृत्व में आयोजित किया गया था। रामाफोसा का पुन: चुनाव कई चुनौतियों के बावजूद संभव हुआ, जिनमें सबसे बड़ी चुनौती थी किसी भी पार्टी का स्पष्ट बहुमत न मिलना।
मई में संपन्न हुए चुनावों में अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस (एएनसी) अपने बहुमत को खोकर सिर्फ 40% वोट ही प्राप्त कर सकी। इसके बाद, एएनसी ने पांच अन्य दलों के साथ गठबंधन करके एक राष्ट्रीय एकता सरकार बनाने का निर्णय लिया। इस गठबंधन में सबसे प्रमुख है विपक्षी दल डेमोक्रेटिक अलायंस (डीए) जिसने 22% वोट प्राप्त किए। इस गठबंधन को रामाफोसा 'नई युग की शुरुआत' के रूप में देख रहे हैं।
रामाफोसा के शपथ ग्रहण समारोह में कई अंतर्राष्ट्रीय हस्तियां भी शामिल हुईं, जिनमें नाइजीरिया के राष्ट्रपति बोला अहमद टिनुबू, अंगोला के जोआओ लोरेन्सो, कांगो के डेनिस सस्सौ न्गेस्सो, और एस्वाटिनी के राजा म्स्वाती III शामिल थे। इसने समारोह को और भी भव्य बनाया।
रामाफोसा को अब अपनी गठबंधन सरकार के साथ कई महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना होगा। सबसे महत्वपूर्ण चुनौती होगी—aानिकीय विचारधाराओं के बीच तालमेल बैठाना, विशेषकर एएनसी और डेमोक्रेटिक अलायंस (डा) के बीच। डा संरचनात्मक सुधारों और व्यावहारिक आर्थिक नीतियों के पक्षधर हैं।
मुख्य मसलों में से एक राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा (एनएचआई) विधेयक है, जिसे रामाफोसा ने चुनाव से ठीक पहले हस्ताक्षरित किया था। डेमोक्रेटिक अलायंस का मनाना है कि यह विधेयक स्वास्थ्य प्रणाली को धवस्त कर सकता है। वहीं, एएनसी के प्रमुख ब्लैक इकोनॉमिक इम्पावरमेंट (बीईई) कार्यक्रम को भी डेमोक्रेटिक अलायंस समाप्त करना चाहती है।
नई गठबंधन सरकार में शामिल अन्य दल हैं: जुलु राष्ट्रवादी इंखाता फ्रीडम पार्टी, एंटी-इमिग्रेशन पैट्रियोटिक अलायंस, और छोटी सेंटर-लेफ्ट गुड पार्टी।
इस नए गठबंधन के कारण निवेशकों ने संतोष जताया है, क्योंकि डेमोक्रेटिक अलायंस के शामिल होने से उम्मीदें जगी हैं कि देश में संरचनात्मक सुधार और व्यावहारिक आर्थिक नीतियों का अनुसरण होगा।
इस गठबंधन ने दक्षिण अफ्रीका की राजनीति में एक नया अध्याय शरू किया है। सोशल मीडिया पर इस गठबंधन को लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएं रही हैं। कुछ ने इसे राजनीतिक स्थिरता की दिशा में एक सकारात्मक कदम बताया, वहीं कुछ ने इसे विचारधारात्मक संघर्षों का नया मोर्चा करार दिया है।
इस मिश्रित विचारधाराओं वाले गठबंधन को एक साथ चलाना रामाफोसा के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती होगी। उन्हें यह साबित करना होगा कि दक्षिण अफ्रीका की राजनीति में नई एकता और समन्वय का नया युग शरू हो चुका है। इसके साथ ही उन्हें देश के विकास और जनहित के मुद्दों को प्राथमिकता देनी होगी।
19 टिप्पणि
जैसे रामाफोसा का दूसरा कार्यकाल दार्शनिक सवाल बन गया है, क्या सत्ता की दोहराव हर बार बदलाव की गांरटी देती है? इस नई गठबंधन को समझना आसान नहीं है, क्यूंकि यह कई विरोधी विचारधाराओं को एक साथ बिठा रहा है। हम देखेंगे कि क्या इस "नई युग की शुरुआत" वाक्यांश में वास्तविक अर्थ है या सिर्फ एक प्रचार है।
दक्षिण अफ्रीका की राजनीति में अब एक नया अध्याय लिखी जा रहा है, पर यह "एकता" कितनी पक्की होगी, यह देखना बाकी है। एएनसी की कमजोर बहुमत और डेमोक्रेटिक अलायंस की प्रोग्रेसिव सोच एक रोचक टकराव को जन्म देती है। अगर दोनों पक्ष आर्थिक सुधारों पर समान समझ बना पाएँ तो निवेशकों का भरोसा भी बरकरार रह सकता है। नहीं तो एक बार फिर भ्रष्टाचार और नौकरशाही का चक्र चल पड़ सकता है।
इसी बीच, गठबंधन की बरबादी का डर अभी भी हवा में है।
रामाफोसा का दूसरा टर्म कई चुनौतियों से भरा है, खासकर एनएचआई बिल को लेकर विभिन्न पार्टियों की अलग-अलग राय है। एएनसी इस बिल को स्वास्थ्य सुधार के रूप में देखती है, जबकि डेमोक्रेटिक एलायंस इसे खर्चा बढ़ाने का खतरा मानती है। इस बीच बीईई प्रोग्राम को बंद करने की मांग भी एक बड़ा मुद्दा बन गई है। अगर ये सब संतुलित नहीं किया गया तो सरकार का भरोसा टूट सकता है।
सच कहूँ तो, इस गठबंधन का सबसे बड़ा अदान‑प्रदान यह है कि निवेशकों को फिर से आशा मिली है, पर यह आशा सतह पर ही नहीं, गहरी जड़ें बनानी होगी। अगर डेमोक्रेटिक अलायंस अपनी आर्थिक नीतियों को ठोस रूप से लागू करेगी, तो हम देखेंगे एक नई विकास लहर। नहीं तो पुराने ढांचों की जड़ें फिर से उभरेगी और सभी निराश होंगे।
सम्पूर्ण राष्ट्र को राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता है, परन्तु इस एकता को तोड़ने वाले विचारधारात्मक विभाजन को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। एएनसी तथा डेमोक्रेटिक अलायंस को मिलकर काम करना चाहिए, न कि एक‑दूसरे को बाधित करना। यह देश की प्रगति के लिये अनिवार्य है, और इस सत्कार्य के लिये सभी शासकों को नैतिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
कभी‑कभी लगता है राजनीति में सब कुछ शो‑बाज है, पर असल में जनता की जिंदगी पर असर पड़ता है।
गठबंधन में जितनी विभिन्न पार्टियाँ हैं, उतनी ही विविध नीतियों का समावेश होगा। यह विविधता एक साथ चलाना आसान नहीं, पर यदि सही तालमेल बना लिया जाए तो यह देश के लिये फायदेमंद हो सकता है। विशेष रूप से आर्थिक सुधार और स्वास्थ्य नीति में संतुलन जरूरी है।
मैं देखता हूँ कि एएनसी ने वोटों की कमी का सामना किया, पर इसका मतलब यह नहीं कि वे अब प्रभावशाली नहीं रहेंगे। उनका बीईई कार्यक्रम अभी भी कई लोगों के लिये महत्वपूर्ण है, इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि गठबंधन में उनके हित कैसे सुरक्षित किए जाएँगे।
यहाँ तक कि अगर सभी पार्टियों के बीच मतभेद हों, एक मजबूत नेतृत्व के बिना यह गठबंधन टिक नहीं पाएगा। इसलिए रामाफोसा को दृढ़ और संतुलित निर्णय लेने चाहिए, जिससे न सिर्फ़ राजनीतिक स्थिरता बल्कि आर्थिक विकास भी सुनिश्चित हो सके।
वाह, इस नई गठबंधन को लेकर मैं काफी आशावान हूँ, पर साथ ही कुछ चिंताएँ भी हैं।
पहले तो यह समझना पड़ेगा कि विभिन्न पार्टियों की नीति‑प्राथमिकताएँ कितनी हद तक मेल खा सकती हैं।
डेमोक्रेटिक अलायंस का फोकस संरचनात्मक सुधारों पर है, जबकि एएनसी अभी भी ब्लैक इकोनॉमिक इम्पावरमेंट को प्राथमिकता देती है।
इन दोनों का संगम बनाना आसान नहीं, लेकिन अगर सही दिशा‑निर्देश बन जाएँ तो यह एक नई आर्थिक लहर ला सकता है।
दूसरी बात, राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा (एनएचआई) बिल को लेकर दोनों पक्षों में वैरभेद है; इसको कैसे संतुलित किया जाए, यह भी बड़ी चुनौती है।
यदि रामाफोसा इस मुद्दे पर मध्यस्थता करके दोनों को संतुष्ट कर सकें, तो स्वास्थ्य क्षेत्र में काफी सुधार हो सकता है।
तीसरी बात, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की भूमिका भी नहीं भूलनी चाहिए; विदेशी निवेशकों का भरोसा तभी बनेगा जब स्थिर सरकार दिखे।
गठबंधन के भीतर यदि कोई पार्टिया अपना एग्रीवमेंट तोड़ दे, तो वह पूरे मंच को हिला देगा।
इसलिए एक मजबूत एग्जीक्यूटिव कमिटी बनानी आवश्यक है, जो सभी पार्टियों के प्रमुख को शामिल करे।
ऐसी समिति में निर्णयों की पारदर्शिता भी होनी चाहिए, जिससे जनता का भरोसा बना रहे।
चौथा, मीडिया की भूमिका भी अहम है; अगर उन्हें सही सूचना मिले तो वे भी समर्थन प्रदान कर सकते हैं।
पाँचवाँ, शिक्षा और तकनीकी क्षेत्रों में निवेश को तेज़ करना चाहिए, ताकि युवा वर्ग को रोजगार मिल सके।
छठा, किसानों के हित में भी विशेष नीतियों की जरूरत है, क्योंकि कृषि अभी भी देश की रीढ़ है।
सातवां, पर्यावरणीय मुद्दे को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता; जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिये नीतियाँ बनानी होंगी।
अंत में, मैं यही कहूँगा कि यह गठबंधन यदि सभी महत्वपूर्ण बिंदुओं को समझे और मिलकर काम करे, तो यह दक्षिण अफ्रीका के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ बन सकता है।
मैं देख रहा हूँ कि कई लोग इस गठबंधन को लेकर संदेह में हैं, पर समय ही सच्चाई को उजागर करेगा। अगर सभी पार्टियाँ अपने-अपने एजेण्डे को नहीं थोपेंगी तो यह एक सकारात्मक दिशा में बढ़ सकता है।
एक लंबी अवधि के विकास को देखना हो तो हमें यह समझना होगा कि राजनैतिक गठबंधन केवल सत्ता की कुर्सी नहीं, बल्कि जनता की भरोसे की नींव भी है। इस गठबंधन में विविध विचारधाराओं का समावेश एक चुनौती है, लेकिन साथ ही यह विविधता नई सामाजिक सोच को जन्म दे सकती है। यदि रामाफोसा के नेतृत्व में सभी पार्टियों का संतुलित सहयोग बना रहता है, तो हम आर्थिक स्थिरता, स्वास्थ्य सुधार और शिक्षा में प्रगति देख सकते हैं। वैसे भी, इस तरह के गठबंधन ने पहले भी कुछ देशों में सफलता पाई है, जहाँ विभिन्न विचारों के बीच समन्वय से राष्ट्रीय विकास गति पाई।
गठबंधन में प्रत्येक पार्टी के अपने लक्ष्य होते हैं, पर सहयोगी ढांचा बनाना जरूरी है।
अगर हम एएनसी की कमजोर स्थिति को देखते हैं तो यह गठबंधन उनके लिए एक अवसर भी हो सकता है, जिससे वे अपने एजेंडे को आगे बढ़ा सकें।
ध्यान रखना, राजनीति में अक्सर नाटक ही सब कुछ नहीं, पर असरदार फैसले ही मायने रखते हैं।
डेमोक्रेटिक अलायंस के पास जो संरचनात्मक सुधारों के दृष्टिकोण हैं, उन्हें एएनसी के साथ तालमेल में लाना एक बड़ा परीक्षण होगा, लेकिन यह संभव भी है।
भवन में कई नई पार्टियाँ हैं, लेकिन उनका सच्चा प्रभाव देखना तब ही होगा जब वे एकजुट हों।
जो लोग इस गठबंधन को केवल विरोधी दलों का मेल मानते हैं, वे शायद इस बात को नहीं समझते कि सहयोग ही शक्ति है, और शक्ति ही तभी कायम रहती है जब सभी हितधारक शामिल हों।