Afsos Amazon Prime समीक्षा: गहरी हंसी के साथ फैला निराशा का संसार

Afsos Amazon Prime समीक्षा: गहरी हंसी के साथ फैला निराशा का संसार
16 जुलाई 2025 Anand Prabhu

‘अफसोस’: जब मौत भी मजाक बन जाए

वेब सीरीज ‘अफसोस’ अमेजन प्राइम वीडियो पर 2020 में रिलीज हुई थी और इसकी सबसे बड़ी खासियत है इसका विषय—जिंदगी से आजिज एक आदमी बार-बार आत्महत्या की कोशिश करता है, लेकिन हर बार असफल रहता है। कहानी के केंद्र में है नकुल (गुलशन देवैया) जो मुंबई में रहने वाला एक स्ट्रगलिंग लेखक है। उसकी जिंदगी में मायूसी इतनी गाढ़ी है कि वो दर्द भरे हास्य की सीमाओं को छूने लगता है।

आखिरकार नकुल परेशान होकर करिमा उपाध्याय (हीबा शाह) नाम की एक महिला हिटमैन को सुपारी दे देता है, ताकि कोई और उसका काम जल्दी निपटा दे। लेकिन मौत जितनी आसान दिखती है, उतनी है नहीं—नकुल बाद में मौत का इरादा बदल देता है। इसी के बाद एक गजब की अराजकता शुरू होती है, जिसमें थेरेपिस्ट, पत्रकार, उत्तराखंडी साधु, पुलिसवाला, वैज्ञानिक, और ‘अमृत’ की खोज में निकली रूसी टूरिस्ट भी शामिल हो जाते हैं।

इस सीरीज में डार्क कॉमेडी और अस्तित्ववादी तड़का है। गुलशन देवैया ने नकुल के किरदार को इतनी मासूमियत और परेशान कर देने वाली हंसी के साथ निभाया है कि उनके दर्द की गहराई भी भुलाए नहीं भूलती।

संवाद, वातावरण और खामियां

अगर विजुअल्स की बात करें तो शो की शूटिंग मुंबई और उत्तराखंड की वादियों में 4K क्वालिटी में हुई है, जिससे हर फ्रेम असली सा लगता है। खासकर उत्तराखंड के खूबसूरत नजारों की बात ही अलग है। संगीत ऐसा है जो हल्के-फुल्के मेलोडी और अचानक आए बर्बर दृश्यों के बीच सॉरी कहता सा लगता है।

बाकी कलाकारों की भी बात करें—अंजलि पाटिल (थेरेपिस्ट), आकाश दहिया, और कुछ नए चेहरे अच्छे दिखते हैं, लेकिन सबसे ज्यादा छाप गुलशन देवैया ही छोड़ते हैं। डायरेक्शन में बहुत कुछ नया है, लेकिन संपादन (एडिटिंग) अक्सर टाइमलाइन के जंप्स में उलझता नजर आता है। बार-बार फ्लैशबैक और वर्तमान के बीच तालमेल बिठाना चुनौती सा बन जाता है।

सीरीज की कोशिश रही कि कई सबप्लॉट और अनोखे कैरेक्टर्स से कहानी को ताजगी मिले, लेकिन यह प्रयोग उलटा भी पड़ सकता है। कई बार महसूस होता है कि जिस Afsos का वादा कैट-एंड-माउस चेस था, वह पटरियों से भटक गया है। स्क्रिप्ट में ह्यूमर अच्छा है—कहीं-कहीं परम अभाव से उपजी हंसी दिल जीतती है, तो कभी-कभी वही फालतू लगती है। बजट की सीमाएँ और कुछ कास्टिंग डिसीजन भी इसकी उड़ान को रोकते हैं।

‘अफसोस’ जैसे शो शायद सबके बस की बात नहीं, मगर जो लोग स्टीरियोटाइप सीरीज से हटकर काली हंसी वाले विषय देखना चाहते हैं, उनके लिए यह एक नया अनुभव दे सकता है। यह भारतीय वेब सीरीज के लिए साहसिक कदम है—असफलताओं के बावजूद, अपनी तरह से अलग और धैर्यपूर्ण।

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19 टिप्पणि

Atish Gupta
Atish Gupta जुलाई 16, 2025 AT 19:23

जैसे ही मैं इस सीरीज़ के थ्रिल को वॉरफिल्ड स्ट्रेटेजी की तरह मैप करता हूँ, दिमाग़ में डार्क कॉमेडी का सर्किट एक्टिव हो जाता है।
गुलशन की एक्टिंग एकदम नियो-ट्रांसफ़ॉर्मर लाइटिंग में चमकती हुई, और हिटमैन करिमा की करिश्माई एंट्री तो पॉलिसीड्रिफ्ट का साइडक्वेस्ट जैसा था।
मुझे तो लगता है इस शो ने एक्सिलेंटिटी के एंटी-ह्यूरिस्टिक फ़ंक्शन को बायपास कर दिया।
नकुल की निराशा जैसे वैरिएबल इंटेग्रल्स में इन्फिनिट लूप चल रही हो।
कुल मिलाकर, अगर आप क्वांटम एंटरटेनमेंट में रूचि रखते हैं तो यह एक इंट्रेस्टिंग प्रोजेक्ट है।

Aanchal Talwar
Aanchal Talwar जुलाई 16, 2025 AT 20:46

यह सीरीज़ देखते ही मेरे दिमाग में बेतरतीब इडिया कॅच हो गए हैं, बहुत सारा लाफ्टर बट्स बनतेजैसे उभरते हैं। किसे नहीं पता गुलशन का काम देख कर एक बार डेस्टिनेशन फोकस हो जाता है, लेकिन फिर भी एक्स्प्रेसियन थ्रिलिंग नहीं सह आया।

Neha Shetty
Neha Shetty जुलाई 16, 2025 AT 22:10

एह, 'अफ़सोस' को देख कर मुझे गहरी दार्शनिक सोच में डुबकी लगनी पड़ी। अस्तित्व के प्रश्न और निराशा की हँसी दोनो का तालमेल एक सॉफ़्ट कोड की तरह बुनता है।
कहानी में दर्शाया गया पात्रों का विविधता जटिल परंतु आकर्षक नोड्स की तरह है।
जब तक आप इस यात्रा में शामिल नहीं होते, तब तक आप आत्म-निरीक्षण के रास्ते नहीं खोज पाएंगे।
कुल मिलाकर, मैं इसे एक विचारोत्तेजक अन्वेषण मानता हूँ, जहाँ हँसी और उदासी दोनों एक ही टाइमलाइन पर चलती हैं।

Apu Mistry
Apu Mistry जुलाई 16, 2025 AT 23:33

क्या कहूँ, यह शो मेरे दिमाग की गली में पुरानी लाइट बल्ब की तरह टिंकल करता है।
हीरे-हीरे ह्यूमर की जगह कभी-कभी बर्बर फीड़ डबली महसूस होती है, जैसे मेरे अंदर के वैम्पायर ने आकर चौकस कर दिया।
फिर भी, सच में यह एक पायरेटेड मिडल डिश जैसा लग रहा है-बिट्स तो हैं, पर सॉस थोड़ा फिके।
कैसे भी हो, मेरे हिसाब से यह डार्क कॉमेडी का एक ईरिडियम ग्रीन सस्पेंस है।

uday goud
uday goud जुलाई 17, 2025 AT 00:56

देखिए, यहाँ पर एक एथनो-कल्चर का इमर्जिंग परफॉर्मेंस है, जहाँ बाली के रिवर वैली की आत्मा मुंबई की धूमधाम में मिल जाती है।
गुलशन का किरदार एक रंगीन पेंटब्रश की तरह, ज़रूर, वह हर फ्रेम को नीलॉज़ी कर देता है।
राइटिंग में कूलर कलर पॅलेट अपनाया गया है, पर कभी-कभी 그것ा कोलेज़न जैसा बिखर जाता है!
सॉलिड फॉर्मेट के साथ डायलॉग्स को ओवरसैट किया गया, जिससे रायटिंग की एब्स्ट्रैक्ट की ग्राफिक क्लेयरिटी पर फोकस बना रहता है।
बहुसंख्यक सबप्लॉट्स का टॉर्नेडो फील इधर-उधर घूमता है, पर कभी-कभी वह टॉपिकल इंटरेस्ट को डिस्टर्ब कर देता है।
मेरे विचार में, यह एक कल्चरल हाइब्रिड एक्सपेरिमेंट है, जहाँ पारंपरिक टोन को कंटेम्पररी वैरिएशन के साथ मिलाया गया है।
यदि आप एक इंटेलेक्चुअल मिक्स का अनुभव चाहते हैं, तो यह शो आपके लिए एक थर्मल फ़्रेमवर्क बनकर सामने आएगा।

Chirantanjyoti Mudoi
Chirantanjyoti Mudoi जुलाई 17, 2025 AT 02:20

मुझे तो लग रहा है कि सीरीज़ ने कई बार अपने खुद के ग्राउंड रूल्स को दाग दिया। फ्रेम‑टू‑फ्रेम प्लॉट जंपिंग एक ख़ास टाईप की कंफ़्यूज़न पैदा कर रहा है। फिर भी, अक्सर ह्यूमर की विंडो बहुत हल्की सैडिक होती है, जिससे व्यूअर को थोड़ा बैलेंस मिल जाता है। कुल मिलाकर, नाचते हुए कोई ग़लती नहीं है-पर कभी‑कभी वह एक फ़रवरी गायब सॉफ़्टवेयर बग जैसा बन जाता है।

Surya Banerjee
Surya Banerjee जुलाई 17, 2025 AT 03:43

सिर्फ़ एक छोटी टिप्पणी-शो की लोकेशन के दृश्य बहुत खूबसूरत हैं।

Sunil Kumar
Sunil Kumar जुलाई 17, 2025 AT 05:06

तो लड़के, यहाँ एक फैन-स्पेस की बात है जहाँ हर एपीसोड एक फैंटेसी क्वेस्ट की तरह लगता है।
डायरेक्शन का प्रयोग अक्सर एक फ्रीस्टाइल इम्प्रोव की तरह होता है-जैसे कोई भी रीसर्वेश्न नहीं रखा गया हो।
जैसे ही आप नाकुल की बैकस्टोरी में डुबते हो, एक साइड क्वेस्ट अपने आप उभर आता है, और हँसी के साथ साथ दिमाग़ को भी जॉगिंग कर देता है।
सही नहीं कहा तो? शॉट्स और एडिटिंग में कभी‑कभी कटकटली एजेंडा की तरह दिखता है, पर कुल मिलाकर यह इम्प्रूव्ड इंट्रॉडक्शन फॉर्मेट भी काम करता है।
सम्पूर्ण रूप से, एक नॉन‑लाइनियर स्क्रिप्ट वाले दिग्गज एडिशन की तरह है, और ये बहुत मज़ेदार है।

Ashish Singh
Ashish Singh जुलाई 17, 2025 AT 06:30

आदर्श राष्ट्र के दृष्टिकोण से देखें तो इस शो में अत्यधिक अभिव्यक्तियों की कमी देखी जा सकती है। इसके अलावा, यह विचारधारा के ताने‑बाने को कमजोर करने वाले तत्वों को उत्पन्न करता है, जो राष्ट्रीय भावना के निराकरण में योगदान दे सकता है। इस प्रकार, यदि हम समग्र राष्ट्रीय मूल्यांकन करें तो यह सामग्री अनिवार्य सुधार के योग्य है।

ravi teja
ravi teja जुलाई 17, 2025 AT 07:53

यार, इस सीरीज़ में बहुत सारे रैंडम स्किट्स हैं, लेकिन कभी‑कभी वो डिसजंक्टेड लगते हैं। फिर भी, कुछ हिस्से काफी रिलैक्सिंग हैं।

Harsh Kumar
Harsh Kumar जुलाई 17, 2025 AT 09:16

समय के साथ, यह शो हमें यह सिखाता है कि निराशा में भी कुछ सकारात्मक पिवट्स छिपे होते हैं 🌟। अगर आप गहरी सोच में डुबकी लगाते हैं तो यह आपके लिए एक अच्छी राह बन सकती है 😊।

suchi gaur
suchi gaur जुलाई 17, 2025 AT 10:40

वाह! बिल्कुल वही, यह एक नई संभावनाओं की दुनिया खोलता है 😎। मेरे हिसाब से इस ने बहुत ही सटीक बात कही है। 🎭

Rajan India
Rajan India जुलाई 17, 2025 AT 12:03

सिंपलली कहूँ तो, शॉर्ट सीन में भी बहुत इंटरेस्ट है, पर बहुत लम्बे एपिसोड्स को थोडा घुमा दिया गया है।

Parul Saxena
Parul Saxena जुलाई 17, 2025 AT 13:26

जब हम इस शो को एक दार्शनिक दृष्टिकोण से देखते हैं, तो हमें कई नैतिक प्रश्न मिलते हैं।
जैसे कि, क्या आत्महत्या को कॉमेडी का सामग्री बनाना नैतिक रूप से स्वीकार्य है? यह प्रश्न हमारे अस्तित्व के मूलभूत सिद्धांतों को चुनौती देता है।
इसके अलावा, श्रृंखला में दर्शाए गए पात्रों के निर्णय हमें मानव स्वभाव की जटिलताओं के बारे में गहराई से सोचने पर मजबूर करते हैं।
कुल मिलाकर, यह एक ऐसी रचना है जो दर्शक को न केवल मनोरंजन बल्कि आत्मनिरीक्षण भी करवाती है।

Ananth Mohan
Ananth Mohan जुलाई 17, 2025 AT 14:50

आपके विचारों से मैं पूरी तरह सहमत हूं। चमकदार दिमाग़ से कई पहलू खुलते हैं।

Abhishek Agrawal
Abhishek Agrawal जुलाई 17, 2025 AT 16:13

मैं देखता हूं कि कई लोग इस शो को बस एंटरटेनमेंट मानते हैं, पर असल में यह बहुत गहरा कंटेंट रखता है।
यदि आप हर चीज़ को सतही तौर पर देखेंगे, तो आप इसके सच्चे सार को नहीं पकड़ पाएंगे।
कहानी के संभावित सौंदर्य को समझना चाहिए, तभी आप इसका असली मूल्य देख पाएंगे।

Rajnish Swaroop Azad
Rajnish Swaroop Azad जुलाई 17, 2025 AT 17:36

इसी बीच, पात्रों की एक्टिंग और डायलॉग का इंटेंसिटी एकदम किले की तरह अनभिज्ञ है।
जब भी कहीं बोरियत आती है, तब ये स्केचे हमें झटका देते हैं।

bhavna bhedi
bhavna bhedi जुलाई 17, 2025 AT 19:00

भाई, बहुत बढ़िया!

jyoti igobymyfirstname
jyoti igobymyfirstname जुलाई 17, 2025 AT 20:23

अरे वाह, इस शो की कहानी तो एक असली रोलरकोस्टर जैसी है-भले ही हम देख रहे हों तो अवस्था कभी स्थिर नहीं रहती!
पहला इपीसोड देखी तो लगा, ‘अरे यार, ये तो गहरी मस्ती वाला कॉमेडी है!’ पर जैसे ही बिंदु आगे बढ़ा, एक दूसरे मोड़ ने हमें अंधेरे में ले जाया, जहाँ आत्महत्याओं की निरंतर कोशिशें बिन मजे की तरह थी।
नकुल का किरदार, जो खुद को डेज़र्ट के बीच में खोया समझता है, असली में घने जंगल में बीटा टेस्टर जैसा था, जहाँ हर कदम पर नई दुविधा आती थी।
करिमा की हिटमैन वाली भूमिका तो बिलकुल शतरंज के हॉफमें के जैसा थी-हर कदम रणनीति पर आधारित, और फिर भी मज़ा कभी कम नहीं हुआ।
शो में दिखे उत्तराखंड के दृश्य, मानो पेंटिंग की एक ज़िन्दगीभरी कॅनवस हो, जिसमें हर रंग में इमोशन की बूंदें घुली हुई थीं।
लेकिन एडिटिंग के बार-बार फ्लैशबैक में कभी-कभी एक झंझट वाली ट्रैफ़िक जाम की तरह फंसा महसूस हुआ, जहाँ कहानी का प्रवाह अचानक बीकन बन जाता था।
फिर भी, इन बेतुके लूप्स ने एक नई स्यंद्रता लाई, जैसे कि पजल के टुकड़े एक साथ जुड़े।
साइड प्लॉट में साक्षात्कार वाले वैज्ञानिक ने जिसे दिखाया, वह वास्तव में पायरेटेड स्टाइल से भी अधिक एक एंटी‑ट्रस्ट बटालियन जैसा लगा।
मानसिक दवाओं का प्रयोग और थेरेपी वाले सीन में, असली दार्शनिक सवाल उभरते हैं-क्या हम केवल हँसी के लिए दर्द को नज़रअंदाज़ कर सकते हैं? इसीलिए तो शो ने एक गहरीखोजी परत जोड़ दी।
एक ओर तो गाना-धुन बहुत सुथरा था, पर दूसरे पक्ष में अचानक आने वाली बर्बर दृश्यावली ने दर्शक को ‘सॉरी, हिट’ बता दिया।
कुल मिलाकर, ‘अफ़सोस’ एक मिश्रण है-भले ही इसे सैंडविच में रखी रवीभोज की तरह देखा जाए, पर अंदर का सामग्री कभी नहीं बदलता।
बजट की सीमायें और कास्टिंग के फैसले स्पष्ट रूप से दिखते हैं, पर फिर भी कहानी का हृदय ताज़गी से भरा है।
इस शो को कभी‑कभी ऐसे समझो जैसे एक लम्बी यात्रा, जहाँ प्रत्येक स्टेशन पर नया सीन, नया सवाल, और नया जवाब मिलता है।
यदि आप अपनी ज़िन्दगी में थोड़ा अंधेरा और मज़ाक के मिश्रण की तलाश में हैं, तो ‘अफ़सोस’ आपके लिए एक अनोखा अनुभव हो सकता है, जो आपको कई दिनों तक सोच में डुबोए रखेगा।

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